Book Title: Agam 41 Mool 02 Pind Niryukti Sutra
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 438
________________ परिशिष्ट-४ आयुर्वेद एवं आरोग्य लूतास्फोट एवं सर्पदंश का उपचार __ अपराद्धिको-लूतास्फोट: सर्पादिदंशो... तच्च दद्रुप्रभृतिषु चारितं सम्भवति तयोरुपशमनाय बन्ध इव बन्धः-प्रलेपस्तस्मिन् कर्तव्येऽचित्तपृथिवीकायस्य गौरमृत्तिकाकेदारतरिकादिरूपस्य ग्रहणं प्रयोजनम्। (मवृ प. ९) मकड़ी द्वारा काटने पर होने वाले फोड़े एवं सर्पदंश आदि से उत्पन्न दाह को कम करने के लिए खेत की मिट्टी के ऊपर आई हुई तरी का लेप किया जाता है। खुजली से उत्पन्न वात की चिकित्सा सुरभ्युपलेन-गन्धपाषाणेन गन्धरोहकाख्येन प्रयोजनं, तेन हि पामाप्रसूतवातघातादिः क्रियते। (मवृ प. ९) खुजली से उत्पन्न वात आदि रोग में गंधरोहक पाषाण का प्रयोग किया जाता है। अजीर्ण रोग एवं उसके कारण • शीतलीभूतानां वाससां प्रावरणे भुक्ताऽऽहारस्याजीर्णतायाम्-अपरिणतौ ग्लानता शरीरमान्द्यमुज्जृम्भते। (मवृ प. १२) पानी से भीगे कपड़ों को पहने हुए आहार करने से भोजन का पाचन नहीं होता, इससे शरीर में अजीर्ण रोग हो जाता है। • ग्लाने मा भवत्वजीर्णमिति भूयो भूयो मलिनानि.प्रक्षाल्यन्ते। (मवृ प. १३) रोग की अवस्था में अजीर्ण न हो इसलिए बार-बार कपड़े धोए जाते हैं। • रात्रौ जागरणभावतस्ते मोदका न जीर्णाः, ततोऽजीर्णदोषप्रभावतोऽतीवपूतिगंधो मारुतनिसगर्गोऽभवत्। (मवृ प. ३३) रात्रि में अत्यधिक जागरण से अजीर्ण एवं अपान-वायु दूषित होती है। • रात्रौ मण्डकवल्लसुराद्यभ्यवहारतो जाताजीर्णेन... दुर्गन्धमजीर्णं पुरीषं व्युदसर्जि। (मवृ प.८३) रात्रि में मण्डक (रोटी), वल्ल और सुरापान करने से अजीर्ण रोग एवं दुर्गन्धयुक्त मल व्युत्सर्जित होता है। अपान में वस्ति द्वारा वायु का प्रक्षेप दइएण वत्थिणा वा, पयोयणं होज्ज वाउणा मुणिणो। गेलण्णम्मि वि होज्जा। ग्लानत्वे मन्दत्वे सति वायुना प्रयोजनं भवति, क्वापि हि रोगे दृत्यादिना संगृह्य वातोऽपानादौ प्रक्षिप्यते। (गा. २८ मवृप. १९) किसी रोग विशेष की चिकित्सा में अपान में वायु का प्रक्षेप किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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