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पिंडनियुक्ति
जिसके शरीर से अत्यधिक अर्ध पक्व रुधिर बह रहा हो, उससे भिक्षा लेने से कुष्ठ रोग का संक्रमण हो सकता है।
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उष्णभोजन का लाभ
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त्रिकमुष्णं गृहिणां तेन सौवीरकूरमात्र भोजनेऽपि तेषामाहारपाकभावतो नाजीर्णादिदोषा जायन्ते । ( मवृ प. १६७ )
गृहस्थ के आहार, शय्या और उपधि तीनों उष्ण होती है अतः यदि वे केवल सौवीर आदि का ही आहार करते हैं तो भी उनके वह आहार पच जाता है, अजीर्ण दोष नहीं होता ।
उष्णेन तापेनाहारो जीर्यते ।
ताप से आहार पचता है।
विगय का परिभोग क्यों ?
शरीरस्यापाटवे संयमयोगवृद्धिनिमित्तं बलाधानाय विकृतिपरिभोगः ।
(मवृ प. १६८)
शरीर में पटुता लाने के लिए, संयम - योगों की वृद्धि के लिए तथा बल प्राप्त करने के लिए विकृति - विगय का परिभोग करना चाहिए ।
छाछ से जठराग्नि प्रदीप्त
तक्रादिनापि हि जाठरोऽग्निरुद्दीप्यते ।
छाछ आदि से जठराग्नि प्रदीप्त होती है । क्षुधा - वेदना
(गा. ३१८ / १ )
नत्थि छुहाय सरिसिया, वियणा भुंजेज्ज तप्पसमणट्ठा । क्षुधा के समान कोई दूसरी वेदना नहीं होती अतः उसके शमन के लिए आहार करना
चाहिए ।
ज्वर में आहार का परित्याग
आतङ्के–ज्वरादावुत्पन्ने सति न भुञ्जीत ।
ज्वर उत्पन्न होने पर आहार नहीं करना चाहिए।
(मवृप. १६८)
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( मवृ प. १६८ )
ज्वर में लंघन के अपवाद
बलावरोधि निर्द्दिष्टं, ज्वरादौ लङ्घनं हितम् । ऋतेऽनिलश्रमक्रोधशोककामक्षतज्वरान् ।
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(मवृप. १७७)
(मवृप. १७७)
ज्वर आदि में लंघन हितकर है लेकिन वात, श्रम, क्रोध, शोक, काम और चोट जन्य ज्वर में लंघन करना शक्ति में अवरोध पैदा करने वाला होता है।
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