Book Title: Agam 41 Mool 02 Pind Niryukti Sutra
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 452
________________ २८० पिंडनियुक्ति २३७ संकित-मक्खित-निक्खित्त जीभा १४७६, ११३ सिझंतस्सुवकारं जीभा १२०८ प्रसा ५६८, २१९/८ सिति-अवणण पडिलाभण निभा ४४५३ तु.मूला ४६२, १२,१८ सी-उण्ह-खार खत्ते ओनि ३४०,३४६ पंचा १३/२६, ३१३/४ सीते दवस्स एगो प्रसा ८६९ पिंप्र ७७, ३१३/३ सीतो उसिणो साहारणो जीभा १६३९, पंव ७६२ प्रसा ८६८ १७७/१ संजतभद्दा तेणा निभा ४५१४ ___५३/२ सीवण्णिसरिसमोदग..... ओनि ४५१ ६४ संजमठाणाणं कंडगाण । जीभा ११०६ १९२/३ सुक्के सुक्कं पडितं जीभा १३०९ ३०३/१ संजोयणमइबहुयं जीभा १६१० २६३/१ सुक्के सुक्कं पढमो जीभा १५६२ ३२ संथार-पाय-दंडग ओनि ३६४ भा.२८ सूक्केण वि जं छिक्कं जीभा १२९८ २४५/१ संसज्जिमेहि वज्जं जीभा १५०८ १४४/१ सुतअभिगमणातविधी निभा ४४८७ २९९ संसद्वैतरहत्थो तु.बृभा १८६८ २४० सुत्तस्स अप्पमाणे जीभा १४८६ २६९ संसत्तेण य दव्वेण जीभा १५७३ २३१/१ सूभगदोभग्गकरा निभा ४४६९, २१४/३ संसोधण-संसमणं निभा ४४३६, जीभा १४५९ जीभा १३९० २१९/६ सेडंगुलि निभा ४४५१ २०० सग्गाम-परग्गामे सग्गाम-पर निभा ४३९७ २४३/३ सेसेहि उ काएहिं जीभा १५०० २४८ सच्चित्तपुढविकाए जीभा १५१८ ११७/३ सेसेहि उ दव्वेहिं तु.निभा ८०९ २४४ सच्चित्तमक्खितम्मी तु.जीभा १५०१ २२५/१ सो एसो जस्स गुणा निभा १०४७, ३७ सच्चित्ते पव्वावण ओनि ३६९ जीभा १४३३ २२०/२ सड्ढऽड्डरत्त केसर...... जीभा १४१७ ३२२ सोलस उग्गमदोसा जीभा १६७१, २०८ समणे माहण किवणे तु.जीभा १३६४ पंचा १३/३ २०७/२ सम्ममसम्मा किरिया निभा ४४१४, १९३ सोलस उग्गमदोसे जीभा १३१३ जीभा १३५४ २६६ हत्थंदुनिगलबद्ध जीभा १५७० २३६/२ सयमेवालोएउं ओनि ४६० २१६ हत्थकप्प-गिरिफुल्लिय तु.जीभा १३९४ २७ सवलय घण-तणुवाया ओनि ३६० २७/२ हत्थसयमेग गंता ओनि ३६१ ३० सव्वो वणंतकाओ ओनि ३६३ ५४/१ हथिग्गहणं गिम्हे ओनि ४५३ १४२/१ सागारि मंख छंदण निभा ४४७८ २४०/२ हियएण संकितेणं जीभा १४८० १७४ सामी चारभडा वा निभा ४५०५ भा.१८ हिययम्मि समाहेउं जीभा ११०३ ८२/१ साली-घत-गुल- गोरस जीभा ११७७, ३१३ हियाहारा मियाहारा जीभा १६३२, तु.निभा २६६२, ओनि ५७८ तु.बृभा ५३४१ २०७/१ होमादऽवितहकरणे निभा ४४१३, सालीमादी अगडे जीभा ११४७ जीभा १३५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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