Book Title: Agam 41 Mool 02 Pind Niryukti Sutra
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 458
________________ २८६ पिंडनियुक्ति अइर-अतिरोहित-अइर त्ति अतिरोहितम्। अवड-कूप। (वृप. ६५) (गा. २५९ वृप. १५५) अवयास-आलिंगन। (गा. २७४) अंडक-मुख-मुखमण्डकम्। (वृप. १७३) अवरद्धिग-मकड़ी के काटने से होने वाला फोड़ा। अंदु-शृंखला, बेड़ी। (गा. २६६) सर्पदंश-अपराद्धिको लूतास्फोट: अक्खरय-दास-अक्षरको व्यक्षरकाभिधानो दास सर्पादिदंशो वा। (गा. १३ वृप. ९) इत्यर्थः। (गा. १७३ वृप. ११०) अवरोप्पर-परस्पर। (गा. १४८) अचियत्त-अप्रीति-अचियत्तं अप्रीतिः। अविला-भेड़ी, मेषी। (वृप. ७१) (गा. १७६ वृप. ११२) असंखडि-कलह का अभाव-असङ्खड्या-- अचोक्खलिणी-स्वच्छता नहीं रखने वाली स्त्री। कलहाभावेन। (गा. १७५ वृप. ११२) (गा. २८८/६) असंथर-अप्राप्ति-असंस्तरे-अनिर्वाहे। अहिल्लय-बिनौला-अट्ठिल्लए त्ति अस्थिकान् (गा. १७७/१ वृप. ११२) कार्पासिकान्। (गा. २८८७ वृप. १६४) अहव-अथवा। (गा. २५१/१) अणिदा-ज्ञानशून्य होकर जीवों की रक्षा करना। आसूय-मनौती से प्राप्त-आसूयम्-औपयाचितकम्। परिज्ञानविकलेन सता यत्परप्राणनिवर्हणं सा (गा. १९४/१ वृप. १२०) अनिदेति। (गा. ६५ वृप. ४२) इट्टग-सेवई, खाद्यविशेष-इट्टगछणम्मि-सेवकिका अत्थाह-अगाध, गहरा। (गा. १५४) क्षणे। (गा. २१९/१ वृप. १३६) अद्धाणसीसय-अटवी के प्रवेश या निर्गम का मार्ग। इट्टगा-सेवई। (गा. २१९/१) ___(पिभा २४) इट्टाल-ईंट। (पिभा ३७) अधिकरण-मैथुन की प्रवृत्ति, अधिकरणं- इणमो-यह। (गा. २५१/२) - मैथुनप्रवृत्तिः। (गा. २३१/६ वृप. १४५) इय-इस प्रकार। (गा. ८९/४) अधिगरण-पाप-प्रवृत्ति-अधिकरणं-पापप्रवृत्तिः। उंडग -खण्ड, टुकड़ा-मांसोंदुकादि-मांसखण्डम्। (गा. १६३ वृप. १०६) . (गा. २७९ वृप. १६०) अनिविट्ठ–अनुपार्जित-अनिवृष्टम्-अनुपार्जितम्। उक्खलिया-स्थाली। (गा. ११२) (गा. १७३/४ वृप. १११) उक्खा -स्थाली। (गा. ११३) अप्पत्तिय-अप्रीति। (गा. ३१४/३) उच्छिंदण-ब्याज पर लेना। (गा. १४४/१) अप्पाहण-संदेश। (गा. २७२) उट्ठाण-अतिसार रोग। (गा. ८६/१) अप्पाहणि-संदेश। (गा. २०१/१) उडूखल-ऊखल। - (गा. १६७) अप्पाहिय-संदिष्ट। (गा. २०१/२) उड्डाह-निंदा-उड्डाहः-प्रवचनमालिन्यम् । अमिला-छोटी भैंस (पाड़ी)। (गा. ८६/२) ___(गा. २१९/८ वृप. १३६) अवचुल्ल-चूल्हे का पिछला भाग, छोटा चूल्हा। उत्तेड-बूंद-उत्तेडा बिन्दवः । (गा. १७/१ वृप. १०) (पिभा २५) उद्देहिगा-दीमक। (गा. ३४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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