Book Title: Agam 41 Mool 02 Pind Niryukti Sutra
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 457
________________ प्रयुक्त देशी शब्द जिन शब्दों का कोई प्रकृति-प्रत्यय नहीं होता, जो व्युत्पत्तिजन्य नहीं होते तथा जो किसी परम्परा या प्रान्तीय भाषा से आए हों, वे देशज शब्द कहलाते हैं। आचार्य हेमचन्द्र ने देशीनाम माला में देशी शब्दों का स्वरूप स्पष्ट करते हुए लिखा है जे लक्खणे ण सिद्धाऽपसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु। न य गहणलक्खणा सत्तिसंभवा ते इह निबद्धा ॥१ वैयाकरण त्रिविक्रम का कहना है कि आर्ष और देश्य शब्द विभिन्न भाषाओं के रूढ़ प्रयोग हैं अतः इनके लिए व्याकरण की आवश्यकता नहीं होती। अनुयोगद्वार में वर्णित नैपातिक शब्दों को देशी शब्दों के अन्तर्गत माना जा सकता है। आगम एवं उनके व्याख्या ग्रन्थों में १८ प्रकार की देशी भाषाओं का उल्लेख मिलता है। वे १८ भाषाएं कौनसी थीं, इनका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। भिन्न-भिन्न प्रान्त के व्यक्ति दीक्षित होने के कारण आचार्य शिष्यों का कोश-ज्ञान एवं शब्द-ज्ञान समृद्ध करने के लिए विभिन्न प्रान्तीय शब्दों का प्रयोग करते थे । निर्युक्ति साहित्य में अनेक प्रान्तीय देशी शब्दों का प्रयोग हुआ है। परिशिष्ट-८ पिण्डनिर्युक्ति में देशी शब्दों का प्रचुर प्रयोग हुआ है। टीकाकार मलयगिरि ने अनेक शब्दों के लिए ‘देशीवचनमेतद्’‘देशीत्वात्' आदि का प्रयोग किया है लेकिन इनके अतिरिक्त भी अनेक देशी शब्दों और देशी धातुओं का प्रयोग इस ग्रन्थ में हुआ है। संख्यावाची शब्द जैसे— पणपण्ण, पण्णास, बायालीस आदि को भी कुछ आचार्य देशी मानते हैं। इस संग्रह में हमने संख्यावाची शब्दों का संग्रह नहीं किया है। अनुकरणवाची शब्दों एवं आदेश प्राप्त धातुओं के बारे में विद्वानों में मतभेद है पर हमने इनको देशी शब्दों के रूप में स्वीकृत किया है। अनेक शब्द संस्कृत कोश में भी मिलते हैं लेकिन उनको यदि देशीनाम माला में देशी माना है तो उनका इस संकलन में संग्रह किया है। जैन विश्वभारती, लाडनूं से प्रकाशित 'देशीशब्दकोष' में दस हजार से अधिक देशी शब्दों का चयन किया गया है। १. देशी १/३ । २. राजटी पृ. ३४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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