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पिंडनियुक्ति
रोग का कारण : गरिष्ठ आहार
खद्धे निद्धे य रुया। खद्ध-प्रचुरे स्निग्धे-बहुस्नेहे भक्षिते रुजा रोगो ज्वरविसूचिकादिरूपः प्रादुर्भवति।
(गा. ८३/५ मवृ प.७०) अधिक और गरिष्ठ भोजन करने से ज्वर या हैजा आदि रोग हो जाते हैं। वात-संक्षोभ से वमन
.... वातसंक्षोभादिवशादुद्वमितम्। वायु-संक्षोभ के कारण वमन हो जाता है।
(मवृ प.७१) धात्री का बालक के शरीर पर प्रभाव
थेरी दुब्बलखीरा, चिमिढो पेल्लियमहो अतिथणीए। तणुई उ मंदखीरा, कोप्परथणियं ति सूइमुहो॥
(गा. १९८/७) या किल धात्री स्थविरा सा अबलक्षीरा अबलस्तन्या इति, ततो बालो न बलं गृह्णाति, या त्वतिस्तनी तस्याः स्तन्यं पिबन् स्तनेन प्रेरितमुख: चम्पितमुखावयवौष्ठनासिकश्चिपिटनासिको भवति, या तु शरीरेण कृशा सा मन्दक्षीरा अल्पक्षीरा, ततः परिपूर्णे तस्याः स्तन्यं बालो न प्राप्नोति, तदभावाच्च सीदति तथा या कूर्परस्तनी तस्याः स्तन्यं पिबन् बालः सूचीमुखो भवति, स हि मुखं दीर्घतया प्रसार्य तस्याः स्तन्यं पिबति, ततस्तथारूपाभ्यासतस्तस्य मुखं सूच्याकारं भवति। (मवृ प. १२३)
स्थविर धात्री के स्तनों में दूध कम होता है अतः बालक बलशाली नहीं हो पाता। अतिस्तनी (स्थूल स्तनी) धात्री का दूध पीते हुए बालक चिपटे नाक वाला हो जाता है। कृश धात्री के स्तन अल्प क्षीर वाले होते हैं, जिससे पर्याप्त दूध नहीं मिलने से बालक अवसन्न रहता है। कूर्परस्तनी धात्री का दूध पीने से बालक का मुख सूई के आकार का हो जाता है क्योंकि वह मुख को लम्बा करके स्तनपान करता है। अत्यधिक जल से आंखों पर प्रभाव जलभीरु अबलनयणो, अतिउप्पलणेण रत्तच्छो।
(गा. १९८/११) अतिशयेनोत्प्लावने प्रभूतजलप्लावनेन गुप्यमानो बालो गुरुरपि जातो नद्यादौ जलप्रवेशे जलभीरुर्भवति तथा निरन्तरजलेनोत्प्लाव्यमानः अबलनयनः अबलदृष्टिर्जायते, रक्ताक्षश्च, यदि पुनः सर्वथाऽपि न मज्ज्यते न शरीरं बलमादत्ते नापि कान्तिभाग, दृष्ट्या चाबलो जायते। (मवृ प. १२४)
नदी में बार-बार जल में मज्जन करवाने से या प्रभूत जल में स्नान करवाने से बालक जल-भीरु हो जाता है। जल में निरन्तर स्नान करने से बालक अबल नयनों वाला, कमजोर दृष्टि वाला तथा लाल आंखों वाला हो जाता है। यदि बिल्कुल भी मज्जन नहीं करवाया जाता है तो बालक का शरीर कमजोर और कांतिहीन हो जाता है तथा बालक की दृष्टि कमजोर हो जाती है।
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