________________
परि. ४ : आयुर्वेद एवं आरोग्य
२६७ आंख के रोग एवं उपचार • अश्वमक्षिका उपयुज्यते अक्षिभ्योऽक्षरसमुद्धरणाय।
(मवृ प. २०) आंखों से अक्षर (मोतियाबिंद) दूर करने हेतु चतुरिन्द्रिय जीव अश्वमक्षिका का उपयोग होता है। • शूकरदंष्ट्रायाः सा हि दृष्टिषु पुष्पिकापनोदाय घर्षित्वा क्षिप्यते। (मवृ प. २०)
दृष्टि-पुष्पिका (आंखों की फूली) को दूर करने के लिए सूअर की दाढ़ घिसकर आंखों
में डाली जाती है। • शङ्खशुक्तिकानां चक्षुः पुष्पकाद्यपनोदादौ।
(मवृ प. २०) शंख और शुक्ति का प्रयोग दृष्टि-पुष्पिका रोग में होता है। फोड़े की चिकित्सा
अस्थनो गृद्धनखिकादेः, तद्धि शरीरस्फोटापनोदाद्यर्थे बाह्यादौ बध्यते। (मवृ प. २०)
गृध्र के नख आदि शरीर के फोड़े को ठीक करने हेतु बाहर बांधे जाते हैं। नख के द्वारा चिकित्सा
नखानां जीवविशेषसत्कानां, ते हि क्वापि धूपे पतन्ति, गन्धश्च तेषां कस्यापि रोगस्यापनोदाय प्रभवति।
(मवृ प. २०) जीव विशेष के नखों को धूप में डाला जाता है, उसकी गंध रोग विशेष को दूर करने में प्रयुक्त होती है। शहद द्वारा वमन-चिकित्सा
मक्षिकाणां परिहारः-पुरीषं परिभोगः, तद्धि वमननिषेधादौ प्रत्यलम्। (मवृ प. २०)
मधुमक्खियों का पुरीष-उच्चार अर्थात् शहद वमन-निवारण के लिए प्रयुक्त होता है। दाहोपशमन एवं सर्पदंश का उपचार
उद्देहिकामृत्तिकादेः सर्पदंशादौ दाहोपशमनाय वेदितव्यः, यद्वा किमपि वैद्यस्त्रीन्द्रियविशेषशरीरादिकं बाह्यप्रलेपादिनिमित्तं वदेत्।
(मवृ प. २०) दीमक की मिट्टी सर्पदंश एवं दाहोपशमन के लिए प्रयुक्त होती है। कुछ वैद्य त्रीन्द्रिय जीव विशेष के शरीर को बाह्य लेप आदि के प्रयोग में बताते हैं। खुजली की गोमूत्र से चिकित्सा
गोमूत्रस्य पामाधुपमर्दने। खुजली आदि की चिकित्सा के लिए गोमूत्र का प्रयोग होता है। (मवृ प. २१)
१. आवहाटी २ पृ. ९०; आसमक्खिया अक्खिम्मि अक्खरा उक्कड्डिज्जइ ति।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org