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परि. ३ : कथाएं
२४१ श्रीमती दिवंगत हो गई। श्रेष्ठी ने सारे घर की जिम्मेवारी ज्येष्ठ पुत्रवधू प्रियंगुलतिका को सौंप दी। श्रेष्ठी के घर में बछड़े सहित एक गाय थी। गाय दिन में बाहर चरने के लिए जाती थी। बछड़ा घर पर ही बंधा हुआ रहता था। चारों ही बहुएं बछड़े को चारा और पानी समय पर देती थीं।
एक बार गुणचन्द्र और प्रियंगुलतिका के पुत्र गुणसागर का विवाह था। उस दिन सभी बहुएं विशेष रूप से आभरण आदि पहनने एवं प्रसाधन करने में व्यस्त हो गईं। बछड़े को चारा देने की बात चारों पुत्रवधूएं भूल गईं। किसी ने भी उसे चारा और पानी नहीं दिया। मध्याह्न के समय श्रेष्ठी बछड़े के पास गया। बछड़ा भी श्रेष्ठी को आते देखकर रोने लगा। श्रेष्ठी ने बछड़े को रोते हुए देखकर जान लिया कि यह अभी तक भूखा है। उसने सभी बहुओं को क्रोधित होकर उपालम्भ दिया। श्रेष्ठी की बात सुनकर प्रियंगुलतिका शीघ्र ही यथायोग्य चारा और पानी लेकर बछड़े के सम्मुख गई। बछड़े ने न तो समलंकृत घर को देखा और न ही देवांगनाओं की भांति सजी हुई पुत्रवधू को रागदृष्टि से देखा। उसकी दृष्टि केवल चारे
और पानी पर थी। १७. द्रव्यपूति : गोबर-दृष्टांत
समिल्ल नामक नगर के बाहर उद्यान में माणिभद्र यक्ष था। एक दिन उस नगर में शीतलक नामक अशिव उत्पन्न हो गया। तब कुछ लोगों ने सोचा कि यदि इस अशिव से हम बच जाएंगे तो एक वर्ष तक अष्टमी आदि पर्व-तिथियों में उद्यापनिका करेंगे। नगर के सभी लोग उस अशिव से निस्तीर्ण हो गए। उन लोगों के मन में निश्चय हो गया कि यह सब यक्ष का चमत्कार है। तब देवशर्मा नामक व्यक्ति को वैतनिक रूप से पुजारी के रूप में नियुक्त करते हुए लोगों ने कहा- 'तुमको एक वर्ष तक अष्टमी आदि दिनों में प्रात:काल यक्ष-सभा को गोबर से लीपना है। उस स्वच्छ एवं पवित्र स्थान पर हम लोग आकर उद्यापनिका करेंगे।' देवशर्मा ने यह बात स्वीकार कर ली।
एक दिन उद्यापनिका के लिए सभा को लीपने हेतु वह सूर्योदय से पूर्व किसी कुटुम्बी के यहां गोबर लेने गया। वहां रात्रि में किसी कर्मचारी को मण्डक, वल्ल और सुरा का पान करने से अजीर्ण हो गया था। पश्चिम रात्रि में उसने गाय के बाड़े में दुर्गन्धयुक्त अजीर्ण मल का विसर्जन किया। उसके ऊपर किसी भैंस ने आकर गोबर कर दिया। ऊपर गोबर होने से वह दुर्गन्धयुक्त मल ढ़क गया अत: देवशर्मा को अंधेरे में ज्ञात नहीं हो सका। वह गोबर सहित मल को लेकर गया और उससे सभा को लीप दिया। उद्यापनिका करने वाले लोग अनेकविध भोजन-सामग्री लेकर वहां प्रविष्ट हुए। वहां उनको अतीव दुर्गन्ध आने लगी, उन्होंने देवशर्मा से पूछा कि यह अशुचिपूर्ण दुर्गन्ध कहां से आ रही है? उसने कहा-'मुझे ज्ञात नहीं है।' उन लोगों ने सभा के आंगन को ध्यान से देखा तो वहां वल्ल आदि के अवयव दिखाई दिए तथा मदिरा की गंध भी आने लगी। उन लोगों को ज्ञात हुआ कि गोबर के मध्य में पुरीष भी था। सभी लोगों ने भोजन को
१. गा. ९६/१, २ वृ प. ७८, ७९ ।
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