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पिंडनियुक्ति
कहते हुए उसने यह सारा कार्य किया। इसी प्रकार वह प्रतिदिन यह कार्य करता था। यह बात ज्ञात होने पर लोगों ने उसका नाम हदज्ञ रख दिया। ३७. मानपिण्ड : सेवई-दृष्टांत
___कौशल जनपद के गिरिपुष्पित नगर में सिंह नामक आचार्य अपने शिष्य-परिवार के साथ आए। एक बार वहां सेवई बनाने का उत्सव आया। उस दिन सूत्र पौरुषी के बाद सब तरुण साधु एकत्रित हुए। उनका आपस में वार्तालाप होने लगा। उनमें से एक साधु बोला-'इतने साधुओं में कौन ऐसा है, जो प्रातःकाल ही सेवई लेकर आएगा।' गुणचन्द्र नामक क्षुल्लक बोला-'मैं लेकर आऊंगा।' साधुओं ने कहा-'यदि सेवई सब साधुओं के लिए पर्याप्त नहीं होगी अथवा घृत या गुड़ से रहित होगी तो उससे हमको कोई प्रयोजन नहीं है, तुम्हें घृत और गुड़ से युक्त पर्याप्त सेवई लानी होगी।' क्षुल्लक बोला-'जैसी तुम्हारी इच्छा होगी, वैसी ही सेवई मैं लेकर आऊंगा।' ऐसी प्रतिज्ञा करके वह नांदीपात्र को लेकर भिक्षार्थ गया। उसने किसी कौटुम्बिक के घर में प्रवेश किया। साधु ने वहां पर्याप्त सेवई देखी। वह प्रचुर घी और गुड़ से संयुक्त थी। साधु ने अनेक वचोविन्यास से सुलोचना नामक गृहिणी से सेवई की याचना की। गृहस्वामिनी ने साधु को भिक्षा देने के लिए सर्वथा प्रतिषेध करते हुए कहा-'मैं तुमको कुछ भी नहीं दूंगी।' तब क्रोधपूर्वक क्षुल्लक मुनि ने कहा-'मैं निश्चित रूप से घी और गुड़ से युक्त इस सेवई को ग्रहण करूंगा।' क्षुल्लक के वचनों को सुनकर सुलोचना भी क्रोधावेश में आकर बोली-'यदि तुम इस सेवई को किसी भी प्रकार प्राप्त करोगे तो मैं समझूगी कि तुमने मेरे नासापुट में प्रस्रवण किया है।' तब क्षुल्लक ने सोचा- 'मुझे अवश्य ही इस घर से सेवई प्राप्त करना है।' दृढ़ निश्चय करके वह घर से निकला और पार्श्व के किसी व्यक्ति से पूछा-'यह किसका घर है ?' व्यक्ति ने बताया कि यह विष्णुमित्र का घर है। क्षुल्लक ने पुनः पूछा कि वह विष्णुमित्र इस समय कहां है? व्यक्ति ने उत्तर दिया-'वह अभी परिषद् के बीच है।'
क्षुल्लक ने परिषद् के बीच में जाकर पूछा-'तुम लोगों के बीच में विष्णुमित्र कौन है?' लोगों ने कहा-'विष्णुमित्र से आपको क्या प्रयोजन है।' साधु ने कहा-'मैं उससे कुछ याचना करूंगा।' विनोद करते हुए उन्होंने कहा-'यह बहुत कृपण है अत: आपको कुछ नहीं देगा। आपको जो मांगना है, वह हमसे मांगो।' तब विष्णुमित्र ने सोचा कि इतने लोगों के बीच मेरी अवहेलना न हो अत: उनके सामने बोला-'मैं ही विष्णुमित्र हूं, मुझसे कुछ भी मांगो।'
तब क्षुल्लक बोला-'यदि तुम छह महिलाप्रधान व्यक्तियों में से नहीं हो तो मैं याचना करूंगा।' तब परिषद् के लोगों ने पूछा-'वे छह महिलाप्रधान पुरुष कौन हैं ?' क्षुल्लक ने कहा कि उन छह पुरुषों के नाम इस प्रकार हैं-१. श्वेताङ्गुलि २. बकोड्डायक ३. किंकर ४. स्नायक ५. गृध्रइवरिङ्खी ६. हदज्ञ। १. गा. २१९/६, वृ प. १३५,१३६, निभा ४४५१, चू पृ. ४२१, पिंप्रटी प. ६०। २. जीभा के अनुसार गिरिपुष्पित नगर कौशल देश में था (जीभा १३९५)। ३. यह छहों कथाएं ३७ वीं कथा के अन्तर्गत है लेकिन सुविधा की दृष्टि से इन कथाओं का वर्णन कथा सं. ३७ से पूर्व कर दिया है।
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