________________
परि. ३ : कथाएं
२५३ ३३. किंकर
किसी गांव में कोई पुरुष अपनी भार्या के स्तन-जघन आदि के स्पर्श में आसक्त था। वह अपनी पत्नी की हर इच्छा का अनुवर्ती था। वह प्रातः उठकर बद्धाञ्जलि अपनी पत्नी से कहता था-'दयिते! मैं तुम्हारे लिए क्या करूं?' वह कहती थी तड़ाग से पानी लेकर आओ। 'जो प्रिया आदेश देगी, मैं वही करूंगा' ऐसा कहकर वह तड़ाग से पानी लाता था। पानी लाकर वह पुनः पूछता था-'प्राणेश्वरि ! अब मैं क्या करूं?' उसकी भार्या कहती मिट्टी के पात्र से तण्डुल निकालकर उनको कंडित करो। इसी प्रकार भोजन से पूर्व मेरे पैरों का प्रक्षालन करो तथा घी से मालिश करो आदि। वह सारा कार्य उसी रूप में सम्पादित करता था। इन सब बातों को जानकर लोगों ने उसका नाम किंकर रख दिया। ३४. स्नायक
किसी ग्राम में कोई पुरुष अपनी पत्नी की आज्ञा का अनुवर्ती था। एक बार उसने अपनी पत्नी से कहा-'मैं स्नान करना चाहता हूं।' उसकी पत्नी ने कहा-'तुम आंवलों को शिला पर पीसो, स्नान पोत्तिका को धारण करो, तैल की मालिश करो और फिर घट लेकर तड़ाग पर जाओ, वहां स्नान करके आते समय जल भरकर ले आओ।' उसने पत्नी के कथन को देवता के आदेश की भांति स्वीकृत करते हुए सारा कार्य सम्पन्न किया। उसका नाम स्नायक' पड़ गया। ३५. गृध्रइवरिली
किसी गांव में कोई पुरुष पत्नी के आदेश के अधीन था। एक बार उसकी पत्नी रसोई में आसन पर बैठी थी। पति ने उससे भोजन की याचना की। उसने कहा-'मेरे पास स्थाली लेकर आओ।' 'जो प्रियतमा आदेश दे वही मेरे लिए प्रमाण है' यह कहता हुआ वह स्थाली लेकर पत्नी के पास गया। पत्नी ने भोजन परोसकर कहा-'भोजन के स्थान पर जाकर भोजन करो।' पुन: उसने तीमन-सब्जी की याचना की। पत्नी ने कहा-'स्थाली लेकर मेरे पास आ जाओ।' तब वह गृध्र की भांति चलता हुआ स्थाली लेकर पत्नी के पास गया। इसी प्रकार उसने तक्र आदि को ग्रहण किया। इन सब बातों को जानकर लोगों ने उसका नाम गृध्रइवरिङ्खी कर दिया। ३६. हदज्ञ
किसी ग्राम में भार्या-मुख को देखने में आसक्त पुरुष उसके हर आदेश का पालन करता था। भार्या के साथ सुख का अनुभव करते हुए कालान्तर में उसको पुत्र की प्राप्ति हुई। पालने में स्थित उसके पुत्र ने मलोत्सर्ग कर दिया। मल से पालना और बच्चे के वस्त्र खरंटित हो गए। तब उसकी पत्नी बोली'बालक के पुत, पालना तथा वस्त्र आदि की सफाई करो।' 'जो प्रिया आदेश देगी, वह मैं करूंगा' ऐसा १. गा. २१९/६, वृ प. १३५, निभा ४४५१, चू पृ. ४२०, पिंप्रटी प. ५९ । २. पिंप्र में तीर्थस्नायक नाम है। ३. गा. २१९/६, वृ प. १३५, निभा ४४५१, चू पृ. ४२०, पिंप्रटी प. ५९। ४. गा. २१९/६, वृ प. १३५, निभा ४४५१, चू पृ. ४२१, पिंप्रटी प. ६० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org