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पिंडनियुक्ति २०. परिवर्तित दोष का लौकिक-दृष्टांत
बसन्तपुर नगर में निलय नामक श्रेष्ठी था। उसकी पत्नी का नाम सुदर्शना था। उसके दो पुत्र थेक्षेमंकर और देवदत्त । उसकी पुत्री का नाम लक्ष्मी था। उसी नगर में तिलक नामक सेठ था, जिसकी पत्नी का नाम सुंदरी था। उसके धनदत्त नामक पुत्र तथा बंधुमती नामक पुत्री थी। क्षेमंकर ने समित आचार्य के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। देवदत्त के साथ बंधुमती तथा धनदत्त के साथ लक्ष्मी का विवाह हुआ।
एक बार कर्मयोग से धनदत्त को दरिद्रता का सामना करना पड़ा। दारिद्रय के कारण वह प्रायः कोद्रव धान्य का भोजन करता था। देवदत्त धनाढ्य था अत: वह सदैव शाल्योदन का भोजन करता था। एक बार क्षेमंकर साधु ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वहां आए। उन्होंने सोचा कि यदि मैं देवदत्त भाई के घर जाऊंगा तो मेरी बहिन के मन में चिन्तन आएगा कि मैं दारिद्र्य से अभिभूत हूं इसलिए मेरा साधु भाई मेरे घर नहीं आया। वह परिभव का अनुभव करेगी अत: अनुकम्पा वश उसने उसके घर में प्रवेश किया। भिक्षा-वेला आने पर लक्ष्मी ने चिन्तन किया-'प्रथम तो यह मेरा भाई है, दूसरी बात साधु है तथा तीसरी बात अभी यह अतिथि है। मेरे घर शाल्योदन नहीं है, कोद्रव का भोजन बना है अत: मैं इसको कैसे भिक्षा दूंगी?' वह अपनी भाभी बंधुमती के पास गई और कोद्रव देकर ओदन लेकर आ गई।
इसी बीच देवदत्त भोजन हेतु अपने घर आ गया। भोजन परिवर्तन की बात अज्ञात होने से कोद्रव भोजन को देखकर उसने सोचा कि बंधमती ने कपणता से आज शाल्योदन न बनाकर कोद्रव का भोजन तैयार किया है। उसने बंधुमती को मारना शुरू कर दिया। प्रताड़ित होती हुई वह बोली-'मुझे क्यों मार रहे हो? तुम्हारी बहिन कोद्रव को छोड़कर शाल्योदन ले गई है।' धनदत्त भी जब भोजन के लिए बैठा तो बंधुमती ने क्षेमंकर मुनि को भिक्षा देकर बचे हुए शाल्योदन परोसे। उसने पूछा-'शाल्योदन कहां से आया?' सारा वृत्तान्त सुनकर धनदत्त कुपित होकर बोला-'पापिनी! तुमने अपने घर से शाल्योदन पकाकर साधु को क्यों नहीं दिए ? दूसरे घर से शाल्योदन मांगकर तुमने मेरा अपमान किया है। उसने भी बंधुमती को प्रताड़ित किया। साधु ने दोनों घरों में होने वाले वृत्तान्त को लोगों से सुना। रात्रि में क्षेमंकर मुनि ने सबको प्रतिबोध देते हुए कहा-'इस प्रकार का परिवर्तित भोजन हमारे लिए कल्पनीय नहीं है। अजानकारी में मैंने वह ग्रहण कर लिया। कलह आदि दोष के कारण भगवान् ने इसका प्रतिषेध किया है।' क्षेमंकर मुनि ने जिनप्रणीत धर्म का विस्तार से प्ररूपण किया। सबको वैराग्य पैदा हो गया। मुनि ने सबको दीक्षा प्रदान कर दी। २१. अभ्याहृत दोष : मोदक-दृष्टांत
किसी गांव में धनावह आदि अनेक श्रावक तथा धनवती आदि अनेक श्राविकाएं रहती थीं। वे सब एक कुटुम्ब से संबंधित थे। एक बार उनके यहां किसी का विवाह था। विवाह सम्पन्न होने पर अनेक मोदक बच गए। उन लोगों ने सोचा कि ये मोदक साधु को भिक्षा में देने चाहिए, जिससे हमको बड़े पुण्य
१. गा. १४८-१४८/२ वृ प. १००, १०१, पिंप्रटी प. ४३।
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