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पिंडनियुक्ति
पर भिक्षा करते हुए साधु को दूर से देखा। वह लकड़ी लेकर साधु को मारने के लिए उनके पीछे दौड़ा। साधु ने पीछे मुड़कर कुपित ग्वाले को देखकर समझ लिया कि निश्चय ही जिनदास ने बलपूर्वक दूध छीनकर मुझे दिया है इसलिए यह मुझे मारने के लिए आ रहा है। साधु ने प्रसन्नवदन से उसके सम्मुख जाना प्रारंभ कर दिया और ग्वाले से कहा-'हे गोपालक! तुम्हारे स्वामी ने आग्रहपूर्वक दूध मुझे भिक्षा में दे दिया, अब तुम अपने दूध को वापस ले लो।' साधु के इस प्रकार कहने से उसका क्रोध उपशान्त हो गया और स्वभावस्थ होकर बोला-'भो साधु! मैं तुम्हें मारने के लिए आया था लेकिन इस समय तुम्हारे वचनामृत के सिंचन से मेरा सारा क्रोध शान्त हो गया। तुम इस दूध को अपने पास रखो। आज मैं तुमको छोड़ता हूं लेकिन भविष्य में कभी आच्छेद्य आहार को ग्रहण नहीं करना, ऐसा कहकर ग्वाला अपने घर लौट गया और साधु भी अपने उपाश्रय में पहुंच गया। २५. अनिसृष्ट दोष : लड्डक दृष्टांत
रत्नपुर नगर में माणिभद्र प्रमुख ३२ युवक साथी रहते थे। एक बार उन्होंने उद्यापन के लिए साधारण मोदक बनवाए और समूह रूप से उद्यापनिका में गए। वहां उन्होंने एक व्यक्ति को मोदक की रक्षा के लिए छोड़ दिया। शेष ३१ साथी नदी में स्नान करने हेतु चले गए। इसी बीच कोई लोलुप साधु वहां भिक्षार्थ उपस्थित हुआ। उसने मोदकों को देखा। लोलुपता के कारण उस साधु ने धर्म-लाभ देकर उस पुरुष से मोदकों की याचना की। उस व्यक्ति ने उत्तर दिया-'ये मोदक केवल मेरे अधीन नहीं हैं, अन्य ३१ साथियों की भी इसमें सहभागिता है अत: मैं अकेला इन्हें कैसे दे सकता हूं?' ऐसा कहने पर साधु बोला"वे कहां गए हैं ?' वह बोला-'वे सब नदी में स्नान करने हेतु गए हैं। उसके ऐसा कहने पर साधु ने पुनः कहा-'क्या दूसरों के मोदकों से तुम पुण्य नहीं कर सकते? तुम मूढ़ हो जो मेरे द्वारा मांगने पर भी दूसरों के लड्डुओं को दान देकर पुण्य नहीं कमा रहे हो? यदि तुम ३२ मोदक मुझे देते हो तो भी तुम्हारे भाग में एक ही मोदक आता है। यदि 'अल्पवय और बहुदान' इस सिद्धान्त को सम्यक् हृदय से जानते हो तो मुझे सारे मोदक दे दो।' साधु के द्वारा ऐसा कहने पर उसने सारे मोदक साधु को दे दिए। लड्डुओं से पात्र भरने पर हर्ष से आप्लावित होकर वह साधु उस स्थान से जाने लगा।
___ इसी बीच साधु को माणिभद्र आदि साथी सम्मुख आते हुए मिल गए। उन्होंने साधु से पूछा'भगवन्! आपको यहां किस वस्तु की प्राप्ति हुई ?' साधु ने सोचा कि यदि ये मोदक के स्वामी है तो मोदक-प्राप्ति की बात सुनकर पुनः मुझसे मोदक ग्रहण कर लेंगे इसलिए 'मुझे कुछ भी प्राप्ति नहीं हुई' ऐसा कहूंगा। उसने वैसा ही कहा। माणिभद्र आदि साथियों को भार से आक्रांत पात्र को देखकर शंका हो गई। उन्होंने कहा-'हम आपका पात्र देखना चाहते हैं।' साधु ने पात्र नहीं दिखाया, तब उन्होंने बलपूर्वक
१. निशीथ चूर्णि में इस कथा के प्रारंभ में कुछ अंतर है। एक ग्वाला दूध का विभाग लेकर गाय की रक्षा करता था। वह
प्रतिदिन दूध देने वाली गायों का चौथाई भाग दूध स्वयं लेता था तथा चौथे दिन गायों का पूरा दूध स्वयं ग्रहण करता था। गा. १७३/२, ३ वृ प. १११, निभा ४५०२ चू पृ. ४३३, पिंप्रटी प. ४७।
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