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अनुवाद
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३७. अपाययुक्त दात्री। ३८. अन्य साधु के लिए स्थापित वस्तु देने वाली स्त्री। ३९. आभोग---ज्ञान होने पर भी अशुद्ध देने वाली स्त्री।
४०. अनाभोग-अज्ञान से अशुद्ध देने वाली स्त्री। २७१. इन दायकों में से प्रथम पच्चीस व्यक्तियों से ग्रहण की भजना है-ऐसा कुछेक आचार्य मानते हैं। विशेष प्रयोजन से इनसे लिया जा सकता है, अन्यथा नहीं। कुछेक मानते हैं कि २६ से ४० तक के दाता का वर्जन करना चाहिए। बालक आदि (१ से २५ तक के दाता) के हाथ से ग्रहण किया जा सकता है। २७२. (अभिनव श्राविका) बालिका को संदेश देकर खेत में चली गई। साधु ने बालिका से पर्याप्त मात्रा में भिक्षा ग्रहण की। मां के द्वारा आहार मांगने पर बालिका ने कहा-'सब साधु को दे दिया।' इससे प्रवचन की अवहेलना तथा प्रद्वेष पैदा होता है तथा लोग कहते हैं कि ये साधुवेश की विडम्बना करने वाले लुटेरे साधु हैं। २७३. स्थविर के लार गिरती रहती है, उसके हाथ कांपते हैं अतः देय वस्तु हाथ से गिर सकती है अथवा स्थविर गिर सकता है। स्थविर प्रायः घर का स्वामी नहीं होता है अत: वह कोई वस्तु देता है तो गृहस्वामी का साधु के प्रति या स्थविर के प्रति अथवा दोनों के प्रति प्रद्वेष हो सकता है। २७४. मत्त व्यक्ति साधु को आलिंगन कर सकता है, भाजन को तोड़ सकता है। वमन करता हुआ मत्त व्यक्ति साधु अथवा उसके पात्र को खरंटित कर सकता है। ये मुनि अशुचि हैं-ऐसी लोक में गर्दा होती है। उन्मत्त दायक के विषय में भी ये ही दोष होते हैं, केवल उसमें वमन नहीं होता। २७५. कंपित दाता से भिक्षा लेने पर वह देय वस्तु बाहर गिर सकती है, पात्र के चारों ओर गिरने से पात्र खरंटित हो सकता है। इसी प्रकार ज्वरित दाता के भी ये ही दोष हैं। विशेष बात यह है कि ज्वर का संक्रमण भी हो सकता है। लोगों में उड्डाह होता है कि ये साधु ज्वरित व्यक्ति से भी भिक्षा लेते हैं। २७६. अंधे दायक से भिक्षा लेने पर लोगों में गर्दा होती है। अंधा दायक ठोकर खाकर नीचे गिर सकता है, पैरों से षड्जीवनिकाय की घात कर सकता है। उससे देय वस्तु का भाजन टूट सकता है। भिक्षा देते समय देय वस्तु से पात्र को चारों ओर से खरंटित कर सकता है। जिसके शरीर से अत्यंत कोढ़ झर रहा हो, उससे भिक्षा लेने पर उस रोग का संक्रमण हो सकता है। २७७. पादुका पहने हुए दाता से भिक्षा लेने पर वह दाता स्खलित होकर गिर सकता है। हथकड़ी और बेड़ी पहने हुए दायक से भिक्षा लेने से दाता को परिताप होता है तथा अशुचि के कारण लोगों में जुगुप्सा होती
१. कथा के विस्तार हेतु देखें परि.३, कथा सं. ४८। २. देय वस्तु पर लार गिरने पर उसे ग्रहण करने से लोक में निंदा होती है। ३. पादुका पहनकर व्यक्ति मल-मूत्र त्याग करने जाता है, पुनः उसकी सफाई न करने से लोक में जुगुप्सा होती है कि ये साधु
अशुचिभूत व्यक्ति से भी भिक्षा ग्रहण करते हैं (मव प. १६०)।
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