Book Title: Agam 41 Mool 02 Pind Niryukti Sutra
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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परि. २ : पदानुक्रम
२२५
२४५/२
१३८/३
२१९/९ २१९/१२ ६९/३
८६
१५७/५
भा. १४ २६२
२२०
२०८/१
१७९/२
२९५/७ ९६/४
७३/१२ ७३/१४
१०१/२
१०३
७३/१३ २९५/३ भा. २९
११७/२
मंस-वस-सोणियासव मच्छिय-घम्मा अंतो मज्जारखइयमंसा मज्झिमनिद्धे दो पोरिसीउ मत्तेण जेण दाहिति मयमातिवच्छगं पि व मरहट्ठग कोसलगा महतीय संखडीए मा एयं देह इमं मा काहिंति अवण्णं मा ताव झंख पुत्तय! मातिपिति पुव्वसंथव मा ते फंसेज्ज कुलं मायावी चडुकारी मालम्मि कुडे मोदग मालाभिमुहिं दट्ठण मालोहडं पि दुविधं मासिगपारणगट्ठा मिच्छत्तथिरीकरणं मीसज्जातं जावंतिगं मुत्तदविएसु जुज्जति रयणपदीवे जोती रस-कक्कब-पिंडगुला रसभायणहेतुं वा रसहेतुं पडिसिद्धो रागग्गिसंपलित्तो रागेण सइंगालं
१३२ २२२ २३१/८ २२४
रायगिहे धम्मरुई रायगिहे य कदाई रायऽवरोहऽवराहे लद्धं पहेणगं मे लब्भंतं पि न गिण्हति लाभित शिंतो पुट्ठो लिंगादीहि वि एवं लिंगेण उ नाभिग्गह लिंगेण उ साधम्मी लित्तं ति भाणिऊणं लेवालेव त्ति जं वुत्तं लोए वि असुइगंधा लोगाणुग्गहकारिसु लोण-दग-अगणि-वत्थी लोणागडोदए एवं लोयविरलुत्तिमंगं लोलति महीय धूलीय वइयादि मंखमादी वंतुच्चारसरिच्छं वड्डति हायति छाया वड्डेति तप्पसंगं वणसइकाओ तिविधो वण्णादिजुया वि बली वय-गंडथुल्लतणुगत्त...... वाउक्काओ तिविधो वाघातेण नियत्तो वासघरे अणुजत्ता
२१०/१ २८२
१६६/२
७७
१६६/१
१६५
१३६/१ १९८/११ १४२
९०/२
२१०
८९
१२०
८०/३
४१/१
८३/४
१३८
२९
१२९
१०२
१९८/५
३०९
२६
३१४/२ ३१५
२१९/१३ ५७/२
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