Book Title: Agam 41 Mool 02 Pind Niryukti Sutra
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
________________
२२४
पिंडनियुक्ति
२८७
३०२/५
१३६
२६५
२७०
३४
१३१ भा. २
१७/१
२६७ २१४ ६४/१ १९४/३ ५२/३ १३०
१६२
२८८/६
२४७
२१४/१
पाहुडि-ठवियगदोसा पाहुडिभत्तं भुंजति पाहुडियं च ठवेंती पाहुडिया वि य दुविधा पिंडण बहुदव्वाणं पिंड-निकाय-समूहे पिंडस्स उ निक्खेवो पिंडे उग्गम-उप्पाय...... पिहितुब्भिण्णकवाडे पीसंती निप्पिटे पुढवी आउक्काए पुढवी आउक्काओ पुढवी आउ वणस्सति पुढवीकाओ तिविधो पुत्तस्स विवाहदिणं पुप्फाणं पत्ताणं पुरपच्छकम्म ससिणिद्ध..... पुट्विं पच्छा संथव पूतीकम्मं दुविधं पोरिसितिगमच्चित्तो बंधति अहेभवाउं बज्झति य जेण कम्म बत्तीसं किर कवला बत्तीसाइ परेणं बत्तीसा सामन्ने बहुयातीतमतिबहुं बादर सुहुमं भावे
बायालीसेसणसंकडम्मि बाले वुड्ढे मत्ते बिय-तिय चउरो पंचिंदिया बेइंदियपरिभोगो भंडगपासवलग्गा भज्जंती व दलेंती भणति य नाहं वेज्जो भावावयारमाहित्तु भावे पसत्थ इतरा भावेसणा उ तिविधा भिक्खग्गाही एगत्थ भिक्खादि गतो रोगी भिक्खादी वच्चंते भिक्खामत्ते अवियालणा भिक्खुदग समारंभे भिक्खू जहण्णगम्मी भिक्खे परिहायंते भुंजंति चित्तकम्मट्ठिता भुंजंती आयमणे भुंजण अजीर पुरिमड्डगाइ भुंज न भुंजे भुंजसु भुत्तुव्वरितं खलु संखडिए भोमाइएसु तं पुण मइमं अरोगि दीहा..... मइलिय फालिय-खोसिय मंगलहेतुं पुण्णट्ठया मंडलपसुत्तिकुट्ठी
२०१/१ २८८/१ १४४/३
३१
१६६ भा. ३६
२४३/२
१९६
२०९/१
२८०
१०७ भा. १५
१५७/३
६४/२
६८/१०
२६३
३१० ३१२/१
१९८/२
१७९
१४५
३१२/३
१३५/१
१११
२८८/४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492