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२९८. ये सारे बहुलेपकृद् द्रव्य हैं, इनमें पश्चात्कर्म की नियमा है
• दूध ।
दही ।
कट्टर - कढ़ी आदि में डाला गया घी का बड़ा ।
• जाउ - दूध से बना पेय पदार्थ । तैल ।
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फाणित - गुड़पानक ।
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२९९. संसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र तथा सावशेष द्रव्य - ये तीन तथा इनके प्रतिपक्षी तीन-असंसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र तथा निरवशेष द्रव्य - इनके परस्पर संयोग से आठ विकल्प होते हैं
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घृत ।
सपिंडरस' - अतीव रस वाले खर्जूर आदि से उत्पन्न द्रव्य ।
संसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र तथा सावशेष द्रव्य ।
संसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र तथा निरवशेष द्रव्य ।
संसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र तथा सावशेष द्रव्य ।
संसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र तथा निरवशेष द्रव्य ।
पिंडनिर्युक्ति
असंसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र तथा सावशेष द्रव्य ।
असंसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र तथा निरवशेष द्रव्य ।
असंसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र तथा सावशेष द्रव्य ।
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असंसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र तथा निरवशेष द्रव्य ।
इन आठ विकल्पों में निश्चय से ओज - विषम विकल्प अर्थात् १, ३, ५, ७ ग्राह्य हैं। शेष सम विकल्प - २, ४, ६, ८ ग्राह्य नहीं हैं।
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३००. छर्दन के तीन प्रकार हैं- सचित्त, अचित्त और मिश्र । इसकी तीन चतुर्भगियां होती हैं। इसके सारे विकल्प प्रतिषिद्ध हैं। यदि इन विकल्पों में ग्रहण किया जाता है तो आज्ञा, अनवस्था, मिथ्यात्व तथा विराधना आदि दोष होते हैं ।
३०१. उष्ण द्रव्य के छर्दन से देने वाला दाता जल सकता है। पृथ्वी आदि षड्निकाय जीवों का दहन हो सकता है। शीत द्रव्य के छर्दन से पृथ्वी आदि के जीवों की विराधना होती है। इस विषय में मधु बिन्दु का
उदाहरण ज्ञातव्य है ।
१. बृहत्कल्पभाष्य (१७१२) के अनुसार आम्र, आम्रातक, कपित्थ, द्राक्षा, मातुलिंग - बिजौरा, केला, खजूर, नारियल, बदरी चूर्ण और इमली- ये सभी पिंडरसद्रव्य हैं ।
२. हाथ और पात्र के संसृष्ट होने पर तथा भिक्षा के पश्चात् द्रव्य सावशेष रहता है तो दात्री उस पात्र का प्रक्षालन नहीं करती अतः विषम भंगों में पश्चात्कर्म की संभावना नहीं रहती लेकिन यदि द्रव्य निरवशेष रूप से साधु को दे दिया जाए तो दान के पश्चात् नियमतः उस बर्तन का तथा हाथ और पात्र का प्रक्षालन किया जाता है अतः द्वितीय आदि सम भंगों में पश्चात्कर्म की संभावना से कल्पनीय नहीं है ( मवृ प. १६९ ) ।
३. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३, कथा सं. ४९ ।
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