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अनुवाद
दोनों प्रकार का संहरण आधार और संह्रियमाण के आधार पर चार भंगों वाला होता है । चतुर्भंगी इस प्रकार हैं—
• शुष्क पर शुष्क ।
शुष्क पर आई ।
आर्द्र पर शुष्क । आर्द्र पर आर्द्र ।
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२६३/२. शुष्क आदि प्रत्येक भंग की स्तोक और बहु के आधार पर चतुर्भंगी होती है, जैसे
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थोड़े शुष्क पर थोड़ा शुष्क ।
थोड़े शुष्क पर बहु शुष्क ।
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बहु शुष्क पर थोड़ा शुष्क ।
• बहु शुष्क पर बहु शुष्क ।
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२६३/३. जिस विकल्प में थोड़े शुष्क पर बहु शुष्क संहत होता है, वह कल्पनीय है । इसके अतिरिक्त शुष्क पर आर्द्र, आर्द्र पर शुष्क या आर्द्र पर आर्द्र- - इन तीन भंगों में आहार अग्राह्य होता है। यदि आदेय वस्तु कम भार वाली है, उस पर लघु भार वाली वस्तु है, उसे अन्यत्र डाल कर दिया जाता है तो वह वस्तु कल्पनीय है ।
२६४. बड़े पात्र को उठाने तथा नीचे रखने में दाता को पीड़ा होती है। लोक में निंदा होती है कि यह मुनि कितना लोलुप है, जो पर - -पीड़ा को नहीं देखता। भारी पात्र को उठाते समय दाता का वध, अंगभंग अथवा शरीर- दाह हो सकता है । दाता के मन में मुनि के प्रति अप्रीति, उस द्रव्य के कारण अन्य देय द्रव्यों का व्यवच्छेद तथा भारी पात्र से वस्तु के बिखरने से षट्काय का वध हो सकता है।
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२६४/१. स्तोक पर स्तोक अथवा बहुत पर स्तोक निक्षिप्त होने पर यदि वस्तु शुष्क पर शुष्क है तो वह वस्तु कल्प्य है। शुष्क पर आर्द्र, आर्द्र पर शुष्क तथा आर्द्र पर आर्द्र निक्षिप्त होने पर वह अनाचीर्ण है । तोक पर बहुत तथा बहुत पर बहुत का संहरण अनाचीर्ण है। इससे पूर्वगाथा (गा. २६४) में उक्त दोष समापन्न होते हैं इसलिए यह अनाचीर्ण है ।
२६५ - २७०. वर्जनीय दायक के चालीस प्रकार हैं
१. बालक - आठ वर्ष की अवस्था से कम ।
२. वृद्ध - साठ या सत्तर वर्ष की अवस्था वाला ।
३. मत्त - मदिरापान किया हुआ ।
४. उन्मत्त - भूत आदि से आविष्ट ।
१. इस चतुर्भंगी को समझने हेतु देखें गा. २५६ का अनुवाद तथा टिप्पण ।
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