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अनुवाद
द्विकों को) एकान्तर से लघु-गुरु (शुद्ध और अशुद्ध) द्विगुण - द्विगुण (प्रज्ञापक की अपेक्षा से) बांई ओर से किए जाने पर सोलह भंग इस प्रकार प्राप्त होते हैं-चार शुद्ध पद और चार अशुद्ध पद में से एक-एक द्विक ऊर्ध्व और अधः स्थापित कर गुणन करने पर, प्रथम दो को दो से गुणन करने पर चार हुए, चार को तृतीय द्विक (यानी दो) के गुणन करने पर आठ हुए, आठ को चतुर्थ द्विक (यानी दो) से गुणन करने पर सोलह हुए । '
२५४. अत्युष्ण रस ग्रहण करने से दो प्रकार की विराधना होती है- आत्मविराधना तथा परविराधना । २ पात्र से इक्षुरस आदि का छर्दन होता है, उससे द्रव्य की हानि होती है तथा वह भाजन साधु या गृहस्थ के हाथ से छूटकर टूट सकता है। (अब वायुकाय के अनंतर और परम्पर निक्षिप्त का कथन है ।) वायु द्वारा उत्क्षिप्त पर्पटिका - धान्य का छिलका अनन्तर निक्षिप्त होता है तथा वस्ति पर निक्षिप्त वस्तु परम्पर निक्षिप्त होती है ।
२५५. हरित आदि पर निक्षिप्त अनन्तर निक्षिप्त होता है तथा हरित आदि पर रखे हुए पिठरक आदि में निक्षिप्त मालपुआ आदि परंपर निक्षिप्त होता है। बैल आदि के पीठ पर रखे हुए मालपूए आदि अनन्तर निक्षिप्त हैं तथा वही कुतुप आदि भाजनों में भरकर बैल की पीठ पर लादने से परंपर निक्षिप्त होते हैं । २५६. पिहित के तीन भेद हैं- सचित्त, अचित्त और मिश्र । इनकी तीन चतुर्भंगियां होती हैं। द्वितीय और तृतीय
१. आधुनिक गणित में इसका सूत्र इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है - ४२ = १६ ।
२. अति उष्ण पदार्थ लेने के कारण गर्म पात्र हाथ से छूट सकता है, मुनि के हाथ-पैर जल सकते हैं। वह आत्म-विराधना है । देने वाले दाता के हाथ से वह गर्म भाजन छूट कर उसे जला सकता है, यह परविराधना है ( मवृ प. १५४) ।
३. प्रथम चतुर्भंगी सचित्त और मिश्र पद के संयोग से होती है। दूसरी सचित्त और अचित्त के संयोग से तथा तृतीय चतुर्भंगी मिश्र तथा अचित्त पद के संयोग से होती है। वे चतुर्भंगियां इस प्रकार बनेंगी -
• सचित्त से पिहित सचित्त देय वस्तु ।
• मिश्र से पिहित सचित्त देय वस्तु ।
• सचित्त से पिहित मिश्र देय वस्तु । • मिश्र से पिहित मिश्र देय वस्तु ।
दूसरी चतुर्भंगी
• सचित्त से पिहित सचित्त देय वस्तु । • अचित्त से पिहित सचित्त देय वस्तु ।
• सचित्त से पिहित अचित्त देय वस्तु । • अचित्त से पिहित अचित्त देय वस्तु ।
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तृतीय चतुर्भंगी
• मिश्र से पिहित मिश्र देय वस्तु ।
• मिश्र से पिहित अचित्त देय वस्तु ।
अचित्त से पिहित मिश्र देय वस्तु ।
• अचित्त से पिहित अचित्त देय वस्तु ।
प्रथम चतुर्भंगी में सभी भंगों में आहार ग्रहण करना कल्पनीय नहीं है। द्वितीय और तृतीय चतुभंगी में प्रथम तीन भंगों में कल्पनीय नहीं है लेकिन चरम भंग में भजना है ( मवृ प. १५४) ।
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