________________
अनुवाद
२४०/४. ( शिष्य प्रश्न पूछता है - ) यदि शंका दोषकरी है तो शुद्ध भिक्षा के प्रति भी शंका होने पर वह अशुद्ध हो जाएगी तथा अनेषणीय भी निःशंकित रूप में एषणा करने पर निर्दोष हो जाएगी।
२४१. अविशुद्ध परिणाम एकपक्षीय होने के कारण एषणीय को भी अनेषणीय बना देता है। शुद्ध परिणाम ( आगमोक्त विधि से युक्त ) से गवेषणा अनेषणीय को भी एषणीय कर देती है ।"
१८३
२४२. प्रक्षित के दो प्रकार हैं- सचित्त और अचित्त । सचित्त के तीन प्रकार तथा अचित्त के दो प्रकार हैं । २४३. सचित्त म्रक्षित के तीन प्रकार हैं- पृथ्वीकायम्रक्षित, अप्कायम्रक्षित, वनस्पतिकायम्रक्षित । अचित्तम्रक्षित के दो प्रकार हैं-गर्हित तथा अगर्हित। इसमें कल्प्य अकल्प्य की भजना है।
२४३ / १. सचित्तपृथ्वीकाय के दो प्रकार हैं- शुष्क और आर्द्र । शुष्क सरजस्क सचित्तपृथ्वीकाय से अथवा आर्द्र सचित्तपृथ्वीकाय से प्रक्षित हाथ या पात्र सचित्तपृथ्वीकायम्रक्षित होता है। इससे आगे मैं अप्कायम्रक्षित बताऊंगा।
२४३ / २. अप्कायप्रक्षित के चार प्रकार हैं- पुरः कर्म, पश्चात्कर्म, सस्निग्ध तथा उदकार्द्र । उत्कृष्ट रस से युक्त परिक्त तथा अनन्त वनस्पति के श्लक्ष्ण खंडों से खरंटित हाथ या पात्र वनस्पतिकाय प्रक्षित है ।
२४३/३. शेष तीनों काय - तेजस्, वायु तथा त्रस - के सचित्तरूप, मिश्ररूप अथवा आर्द्ररूप प्रक्षित नहीं होता ।
२४४. सचित्त पृथ्वीकाय आदि से म्रक्षित के चार विकल्प हैं
हस्तम्रक्षित तथा पात्र म्रक्षित ।
·
• हस्त प्रक्षित, पात्र नहीं ।
• पात्र प्रक्षित, हस्त नहीं ।
• न हस्त प्रक्षित और न पात्र प्रक्षित ।
प्रथम तीन विकल्प प्रतिषिद्ध हैं, चौथा विकल्प अनुज्ञात है।
२४५. अचित्तम्रक्षित भी हस्त और पात्र विषयक पूर्ववत् चार प्रकार का होता है। चारों विकल्पों में ग्रहण भजन है। गर्हितम्रक्षित से युक्त हाथ या पात्र से भिक्षा ग्राह्य तथा गर्हित प्रक्षित का प्रतिषेध है । २४५/ १. जीवों से संसक्त, अगर्हित गोरसद्रव तथा मधु, घृत, तैल, गुड़ आदि से खरंटित हाथ या पात्र से
१. टीकाकार इस गाथा को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि आगमोक्त विधि से शुद्ध गवेषणा से प्राप्त अशुद्ध आहार भी शुद्ध होता है क्योंकि व्यवहार में श्रुतज्ञान ही प्रमाण होता है ( मवृ प. १४८ ) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org