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अनुवाद
वस्तुएं चुराई और किसके द्वारा मैं ठगा गया हूं ?"
२२८. विद्या से अभिमंत्रित वह व्यक्ति अथवा अन्य कोई व्यक्ति स्तम्भन आदि प्रतिविद्या से मुनि का अनिष्ट कर सकता है। लोगों में यह अपवाद होता है कि ये मुनि पापजीवी, मायावी तथा कार्मणकारी हैं। इस अपवाद से उनका राजपुरुषों द्वारा निग्रह अथवा अनिष्ट भी हो सकता है।
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२२८/१. जैसे-जैसे पादलिप्त आचार्य ने जानु पर प्रदेशिनी अंगुलि को घुमाया, वैसे-वैसे मुरुंड राजा की शीर्ष - वेदना समाप्त हो गई।
२२९. (मंत्र का प्रयोग करने के निम्न दोष हैं -) मंत्र से अभिमंत्रित वह व्यक्ति अथवा अन्य कोई व्यक्ति प्रतिमंत्र से साधु को स्तम्भित कर सकता है। (लोगों में यह अपवाद होता है कि) ये साधु पापजीवी, मायावी और कार्मणकारी हैं। संघ-प्रभावना के लिए आपवादिक स्थिति में मंत्र का प्रयोग हो सकता है।
२३०. चूर्ण के प्रयोग से अन्तर्धान होने के विषय में चाणक्य का योग विषयक पादलेपन में समितआचार्य का, मूलकर्म के विषय में युवती का विवाह तथा गर्भाधान और गर्भपरिशाटन में दो रानियों के उदाहरण हैं ।
२३१. मंत्र और विद्या के संदर्भ में जो दोष बतलाए गए हैं, वे ही दोष वशीकरण आदि चूर्ण में जानने चाहिए। एक मुनि द्वारा कृत चूर्ण-प्रयोग अनेक मुनियों के प्रति प्रद्वेष उत्पन्न कर देता है तथा उनका नाश भी कर सकता है।
२३१/१. सौभाग्यकर-दुर्भाग्यकर योग दो-दो प्रकार के हैं - आहार्य तथा अनाहार्य । आहार्य के दो प्रकार हैं- आघर्ष तथा धूपवास । अनाहार्य है - पादप्रलेपन आदि ।
२३१ / २. कृष्णा और वेन्ना नदी के मध्य (ब्रह्म नामक ) द्वीप में पांच सौ तापस रहते थे। पर्व दिनों में कुलपति पाद-लेप करके कृष्णा नदी को पार करता था। लोग उसका सत्कार करते थे ।
२३१/३. श्रावकों के समक्ष लोग निंदा करके कहते कि तुम्हारे गुरु में शक्ति नहीं है। समितसूरि ने बताया
१. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३, कथा सं. ४० ।
२. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३, कथा सं. ४१ ।
३. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३, कथा सं. ४२ । क्षुल्लक द्वय एवं चाणक्य की कथा का विस्तार भाष्यकार ने तीन गाथाओं (पिभा ३५-३७) में किया है।
४. जो पानी आदि के साथ पीए जाते हैं, वे आहार्य योग हैं। इनके दो प्रकार है- आघर्ष अर्थात् पानी आदि के साथ घिसकर पीया जाने वाला द्रव्य तथा धूपवास - सुगंधित द्रव्यों की धूप। चूर्ण और वास दोनों ही क्षोद रूप में होते हैं। टीकाकार इनका भेद स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि सामान्य द्रव्यों से निष्पन्न शुष्क अथवा आर्द्र क्षोद 'चूर्ण' कहलाता है। सुगन्धित द्रव्यों से निष्पन्न अत्यंत सूक्ष्म रूप में पीसा हुआ क्षोद 'वास' कहलाता है (मवृ प. १४३) ।
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