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पिंडनिर्युक्ति
(पति के द्वारा कारण पूछने पर पत्नी ने कहा ) - ' नैमित्तिक ने आपके आगमन की बात पहले ही बता दी थी ।' पति ने रुष्ट होकर नैमित्तिक से पूछा - 'इस घोड़ी के पेट में क्या है ?" "
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२०६. आजीवना के पांच प्रकार हैं- जाति, कुल, गण, कर्म और शिल्प । प्रत्येक के दो-दो प्रकार हैं- सूचा से कहना अर्थात् विशेष शब्दों से कहना अथवा असूचा - स्फुट वचनों से कहना ।
२०७. जाति और कुल के विषय में विशेष विवरण है। मल्ल आदि के समूह को गण तथा कृषि आदि को कर्म' कहा जाता है। शिल्प है तुनना, सीना आदि । अप्रीति उत्पादक कर्म और प्रीति उत्पादक शिल्प' कहलाता है।
२०७/१. ब्राह्मण पुत्र द्वारा सही रूप से होम आदि क्रिया करते देखकर मुनि यह जान लेता है कि यह ब्राह्मण पुत्र है अथवा यह गुरुकुल में रहा हुआ है अथवा (मुनि उसके पिता से कहता है कि तुम्हारा पुत्र) आचार्य के गुणों को सूचित करता है ।
२०७/२. (मुनि अपनी जाति प्रकट करने के लिए ब्राह्मण-पिता के सामने कहता है ) – तुम्हारे पुत्र ने होम आदि क्रिया सम्यग् या असम्यग् रूप से संपादित की है। असम्यग् क्रिया के तीन रूप हैं- न्यून, अधिक तथा विपरीत । सम्यग् क्रिया के ये घटक हैं-समिधा - यज्ञ की लकड़ी, मंत्र, आहुति, स्थान, याग- यज्ञ, काल, घोष आदि । (यह सुनकर ब्राह्मण जान लेता है कि मुनि भी ब्राह्मण जाति का है, यह जाति से उपजीवना है ।)
२०७/३. जाति की भांति ही उग्रकुल' आदि की उपजीवना के बारे में जानना चाहिए। गण में मंडल' - प्रवेश आदि का ज्ञान होता है। युद्ध-प्रवेश में देवकुल दर्शन', प्रतिमल्ल के आह्वान हेतु वैसी ही भाषा का कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३, कथा सं. २८, इस कथा की व्याख्या में भाष्य की दो गाथाएं (पिभा ३३, ३४) हैं। २. मवृ प. १२९; मातुः समुत्था जातिः - मातृपक्ष से उत्पन्न जाति कहलाती है।
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मवृ प. १२९; पितृसमुत्थं कुलम् - पितृपक्ष से उत्पन्न कुल कहलाता है।
४,५. कृषि आदि को कर्म तथा बुनाई, सिलाई आदि को शिल्प कहा जाता है अथवा अप्रीति, अरुचि पैदा करने वाला कर्म
तथा प्रीति उत्पन्न करने वाला अर्थात् मन को आकृष्ट करने वाला शिल्प कहलाता है। टीकाकार मलयगिरि ने मतान्तर प्रस्तुत करते हुए कहा है कि अनाचार्य के द्वारा उपदिष्ट कर्म तथा आचार्य द्वारा उपदिष्ट शिल्प कहलाता है (मवृप. १२९, निभा ४४१२, चू पृ. ४१२ ) ।
टीकाकार इस गाथा की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि इन सूचनाओं से मुनि अपनी जाति को प्रकट कर देता है कि वह ब्राह्मण है (मवृप. १२९ ) ।
उग्रकुल में प्रविष्ट मुनि पुत्र को आरक्षक कर्म में नियुक्त देखकर कहता है कि लगता है तुम्हारा पुत्र पदाति सेना के नियोजन में कुशल है। इस बात को सुनकर पिता जान लेता है कि यह साधु उग्र कुल में उत्पन्न है। यह सूचा के द्वारा स्वकुल का प्रकाशन है। जब वह स्पष्ट वचनों में अपने कुल को प्रकट करता है कि मैं उग्र या भोग कुल का हूं तो यह असूचा के द्वारा कुल को प्रकट करना है (मवृ प. १२९ ) ।
मवृ प.१२९; इहाकरवलके प्रविष्टस्यैकस्य मल्लस्य यल्लभ्यं भूखण्डं तन्मण्डलम् - मण्डल - एक मल्ल के लिए जो लभ्य भूखण्ड है, वह मंडल कहलाता है।
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९. मवृ प. १३० ; देवकुलदर्शनं युद्धप्रवेशे चामुण्डाप्रतिमाप्रणमनम् - युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय चामुण्डा देवी की प्रतिमा को प्रणाम किया जाता था ।
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