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अनुवाद
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१७/२. ये तीनों आदेश अनादेश हैं क्योंकि इनमें काल-नियमन संभव नहीं है। प्रतिनियत काल न होने के निम्न कारण हैं-बर्तन का रूक्ष या स्निग्ध होना, तेज अथवा मंद वायु का सम्पर्क होना तथा तण्डुल के पकने में काल की अनियतता। १७/३. जब तक तण्डुलोदक अति स्वच्छ नहीं होता, तब तक वह मिश्र है, यह मत ही प्रमाण है, शेष नहीं। जो अति स्वच्छ (सफेद) है, उसे अचित्त जानना चाहिए। १८. इन वस्तुओं से अप्काय अचित्त होता है-शीत, उष्ण, क्षार, क्षत्र-करीष विशेष, अग्नि, लवण, ऊष-ऊषर क्षेत्र में उत्पन्न लवण मिश्रित रजकण विशेष, खटाई, स्नेह-तैल' आदि। जो अप्काय व्युत्क्रान्तयोनि अर्थात् अचित्त हो जाता है, उससे साधुओं का प्रयोजन होता है। १९. परिषेक, पीने, हाथ आदि धोने, वस्त्र धोने, आचमन करने, पात्र धोने आदि कार्यों में अचित्त अप्काय का प्रयोग होता है। २०. ऋतुबद्ध काल में वस्त्र-प्रक्षालन से चारित्र बकुश होता है, ब्रह्मचर्य का विनाश होता है, मुनि अस्थान में स्थित माना जाता है, संपातिम तथा वायुकाय के जीवों का वध होता है तथा वस्त्र धोए हुए जल के प्लावन से जीवों का उपघात होता है।
२१. वर्षाकाल की सन्निकटता में वस्त्र-प्रक्षालन न करने पर निम्न दोष उत्पन्न होते हैं
• वस्त्रों का भार बढ़ जाता है। • वे जीर्ण हो जाते हैं। • वस्त्रों में लीलन-फूलन (काई) आ जाती है। • शीतलीभूत वस्त्रों को पहनने से अजीर्ण रोग होता है, जिससे प्रवचन की अपभ्राजना-निंदा
होती है।
१. भांड में लगे बिन्दु का अपगम, बुद्बुद का नाश तथा चावल के निष्पन्न होने का सर्वत्र एक जैसा समय नहीं
होता। इसका कारण है रूक्ष बर्तन में लगे बिन्दु जल्दी सूखते हैं, जबकि स्निग्ध बर्तन के बिन्दुओं को सूखने में समय लगता है। इसी प्रकार तेज पवन के सम्पर्क से बुबुदे जल्दी समाप्त होते हैं, मंद पवन से उतनी जल्दी समाप्त नहीं होते तथा जल की भिन्नता के कारण चावल के पकने में भी समय की नियमितता नहीं रहती। मीठे पानी में चावल जल्दी पकते हैं तथा खारे जल में चावलों को पकने में समय लगता है। इसी प्रकार प्रचुर अग्नि में जल्दी पकते हैं, मंद अग्नि में अधिक
समय से पकते हैं (मवृ प. १०, ११)। २. दधि या तैल के घड़े में रखे हुए पानी के ऊपर जो तरी आती है, वह यदि स्थूल होती है तो सचित्त जल एक पौरुषी में
अचित्त हो जाता है, मध्यम होती है तो दो पौरुषी में तथा पतली होती है तो तीन पौरुषी में अचित्त होता है (मवृ प. ११)। ३. मवृ प. ११; परिषेको-दुष्टवणादेरुत्थितस्योपरि पानीयेन परिषेचनं-दुष्ट व्रण होने पर उसके ऊपर पानी का सेक। ४. उच्चार-प्रस्रवण करने के बाद पानी से शुद्धि हेतु जल का प्रयोग। ५. साफ कपड़ों को देखकर लोग सोचते हैं कि अवश्य ही यह कामी है, अन्यथा यह स्वयं को इतना मण्डित क्यों
करता? (मवृ प. ११)
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