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पिंडनियुक्ति
आतप-धूप में सुखाए। सुखाए गए वस्त्रों को निरन्तर देखता रहे (जिससे कि चोर आदि उनको चुराकर न ले जाएं।) वस्त्र के प्रक्षालन तथा सुखाने में हुए असंयम के लिए गुरु शिष्य को 'कल्याणक' नामक प्रायश्चित्त दे। २३. तेजस्काय के तीन प्रकार हैं-सचित्त, मिश्र और अचित्त। सचित्त तेजस्काय के दो प्रकार हैंनिश्चयसचित्त और व्यवहारसचित्त। २४. ईंटों का भट्टा, कुम्भकार का आवा आदि का बहुमध्यभाग, विद्युत् तथा उल्का आदि निश्चयसचित्त तेजस्काय हैं। अंगारा आदि व्यवहारसचित्त तेजस्काय है। कंडे की आग आदि मिश्र सचित्त तेजस्काय है। २५. ओदन, व्यञ्जन, पानक-कांजी का पानी, आयाम-अवश्रावण, उष्णोदक, कुल्माष, डगलक, राख से युक्त सूई, पिप्पलक-किञ्चित् वक्र क्षुर विशेष (कैंची) आदि-ये अचित्त अग्निकाय के उदाहरण हैं। ओदन आदि का भोजन आदि में प्रयोग होता है। २६. वायुकाय के तीन प्रकार हैं-सचित्त, अचित्त और मिश्र। सचित्त वायुकाय दो प्रकार का हैनिश्चयसचित्त तथा व्यवहारसचित्त। २७. वलयाकार घनवात' तथा तनुवात', अतिहिम और अतिदुर्दिन ---इनसे होने वाली वायु निश्चयतः सचित्त वायु है। (अतिहिम और अतिदुर्दिन के अभाव में) जो पूर्व आदि दिशा की वायु है, वह व्यवहारतः सचित्त है। आक्रान्त आदि वायु अचित्त होती है। २७/१. आठ कर्मों को मथने वाले जिनेश्वरदेव ने पांच प्रकार की अचित्त वायु का प्रतिपादन किया है
• आक्रान्त - पैरों से आक्रान्त कर्दम आदि से निकलने वाली वायु। • ध्मात - धौंकनी से निकलने वाली वायु। • घाण - तिलपीड़न-यंत्र से निकलने वाली वायु। • देहानुगत – गुदा प्रदेश से निःसृत वायु।
• पीलित - आर्द्र वस्त्र को निचोड़ने से निःसृत वायु । २७/२. मुंह की अचित्त वायु से भरी हुई दृति (जिसका मुंह डोरी से बांध दिया गया है।) जल में बहती हुई सौ हाथ जाने तक अचित्त वायु वाली रहती है, दूसरे हस्तशत में वह वायु मिश्र हो जाती है और तीसरे हस्तशत में वह सचित्त हो जाती है, फिर वह सचित्त ही रहती है। वस्ति अथवा दृतिस्थ वायु स्थल में होने
१. ओदन यावत् पिप्पलक-ये सारे पहले अग्निकाय के रूप में परिणत थे, इसके आधार पर इन्हें अग्निकाय माना गया है। २. घनवात-नरक आदि पृथ्वी के नीचे वलयाकार के रूप में होने वाली घनीभूत वायु (मवृ प. १७)। ३. तनुवात-नरक आदि पृथ्वी के नीचे वलयाकार के रूप में होने वाली तरल वायु (मवृ प. १७)। ४. मेघ से उत्पन्न अंधकार।। ५. ठाणं (५/१८३) में घाण के स्थान पर सम्मूछिम वायु का उल्लेख है, जो पंखा आदि झलने से होती है।
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