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अनुवाद
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५२/२. इसी प्रकार चतुष्पद, अपद, अचित्त और मिश्र विषयक द्रव्यों में जहां जो उपयुक्त हो, वहां एषणा, गवेषणा, मार्गणा आदि शब्दों का संयोजन करना चाहिए। ५३/३. वीतराग भगवान् ने भावैषणा के क्रमश: तीन प्रकार प्रतिपादित किए हैं-गवेषणा, ग्रहणैषणा और ग्रासैषणा। ५२/४. अगवेषित पिंड का ग्रहण नहीं होता और अगृहीत का परिभोग नहीं होता। तीन एषणाओं का यह क्रम जानना चाहिए। ५३. गवेषणा के चार प्रकार हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य तथा भाव। द्रव्य विषयक गवेषणा के उदाहरण हैंमृग और हाथी की गवेषणा। भाव गवेषणा है-उद्गम-उत्पादन आदि दोषों से रहित आहार की गवेषणा। ५३/१,२. जितशत्रु राजा, सुदर्शना देवी, चित्रसभा में स्वर्णपृष्ठ वाले मृगों का दर्शन, दोहद की उत्पत्ति, पूर्ति न होने से दुर्बलता, राजा द्वारा पृच्छा, सेवकों को मृग लाने का आदेश। श्रीपर्णी फल के सदृश मोदकों को बनवाकर उन्हें श्रीपर्णी वृक्ष के नीचे रखना। फल देखकर मृगों का आगमन। यह प्रशस्त और अप्रशस्त उपमा का उदाहरण है। जिन कुरंगों ने यूथाधिपति का वचन माना, वे दीर्घजीवी हुए और जिन्होंने लोलुपतावश इस वचन को नहीं माना, वे पाश में बंधकर दु:ख के भागी बने। ५४. मृगों को यह विदित है कि श्रीपर्णी वृक्ष कब फलता है? (यदि अभी फलता भी है तो फलों का ढेर नहीं होता।) यदि कहा जाए कि वायु के कारण ऐसा हुआ है तो पुराने जमाने में भी वायु चलती थी परन्तु इतने ढ़ेर सारे फल कभी नहीं हुए। ५४/१. ग्रीष्मकाल में राजा ने हाथी पकड़ना चाहा। पुरुषों ने अरघट्टों से तालाब को पानी से भरा। अत्यधिक पानी से तालाब में नलवन उग गए। उसके आकर्षण से गजयूथ का आगमन हो गया। ५५. हाथियों को यह विदित होता है कि नलवन कब और कहां उगते हैं? अन्य काल में भी तालाब पानी से भरते हैं परन्तु इस प्रकार लबालब नहीं होते (यूथपति द्वारा सचेष्ट किए जाने पर जो हाथी उस तालाब पर नहीं गए, वे प्रशस्त हाथी हुए। जो वहां जाकर कूटपाश में फंस गए, वे अप्रशस्त हाथी कहलाए। यह द्रव्यैषणा का वर्णन है।) ५६. उद्गम, उद्गोपना और मार्गणा-ये एकार्थक शब्द हैं। उद्गम के चार प्रकार हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य तथा भाव।
५७. द्रव्य उद्गम में लड्डक आदि का उदाहरण है। भाव उद्गम तीन प्रकार का जानना चाहिए-दर्शन विषयक, ज्ञान विषयक और चारित्र विषयक । प्रस्तुत प्रसंग में चारित्र विषयक उद्गम का प्रसंग है।
१. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३ कथा सं. १। २. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३ कथा सं. २।
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