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अनुवाद
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प्रवचन' साधर्मिक – तीर्थ चतुष्टय में कोई एक सदस्य। लिंग साधर्मिक – मुनि के समान रजोहरण, मुखपत्ति आदि वेश धारण करने वाला। दर्शन साधर्मिक - समान दर्शन वाला, दर्शन के तीन प्रकार हैं। ज्ञान साधर्मिक - समान ज्ञान वाला, ज्ञान के पांच प्रकार हैं। चारित्र साधर्मिक - समान चारित्र वाला, चारित्र साधर्मिक के पांच प्रकार अथवा तीन
प्रकार हैं। अभिग्रह साधर्मिक – समान अभिग्रह करने वाला। अभिग्रह साधर्मिक के चार प्रकार
भावना साधर्मिक - समान भावना वाला। अनित्य आदि बारह भावनाओं के आधार
पर भावना साधर्मिक के बारह प्रकार हैं।६ ७३/४, ५. (नाम साधर्मिक की कल्प्याकल्प्य विधि-) किसी के पिता का नाम देवदत्त था। उसकी मृत्यु पर पुत्र ने यह संकल्प किया कि गृहस्थ हो या साधु, जिनका नाम देवदत्त है, मैं उनको आहार आदि दूंगा। ऐसी स्थिति में देवदत्त नाम के मुनियों को वह आहार नहीं कल्पता। यदि गृहस्थ यह संकल्प करे कि देवदत्त नामक सभी गृहस्थ व्यक्तियों को आहार दूंगा तो ऐसे निर्धारण में देवदत्त नामक साधुओं को वह आहार कल्पता है। इसी प्रकार पाषंडी-मतांतर वाले साधुओं के विषय में मिश्र-अमिश्र की बात समझनी
१. टीकाकार मलयगिरि ने पूर्वाचार्य कृत व्याख्या का उल्लेख करते हुए कहा है कि प्रवचन, लिंग आदि सप्तक के द्विसंयोग
से २१ भेद होते हैं। प्रवचन के लिंग, दर्शन यावत् भावना तक छह भंग होते हैं। लिंग के दर्शन आदि के साथ पांच, दर्शन के ज्ञान आदि के साथ चार, ज्ञान के चारित्र आदि के साथ तीन, चारित्र का अभिग्रह और भावना के साथ दो तथा अभिग्रह का भावना के साथ एक-इस प्रकार सब मिलकर इक्कीस भेद होते हैं। इन इक्कीस भेदों में प्रत्येक की एक-एक चतुर्भंगी
होती है (मवृ प.५५)। २. त्रिविध दर्शन साधर्मिक-१. क्षायिकदर्शन साधर्मिक २. क्षायोपशमिक दर्शन साधर्मिक ३. औपशमिक दर्शन साधर्मिक।
(क्षायिकदर्शन वाला क्षायिक दर्शनी का साधर्मिक होता है)। ३. पंचविध ज्ञान साधर्मिक-१. मतिज्ञान साधर्मिक २. श्रुतज्ञान साधर्मिक ३. अवधिज्ञान साधर्मिक ४. मनःपर्यव ज्ञान
साधर्मिक ५. केवलज्ञान साधर्मिक। ४. पंचविध चारित्र साधर्मिक-१. सामायिक चारित्र साधर्मिक २. छेदोपस्थापनीय चारित्र साधर्मिक ३. परिहारविशुद्धि चारित्र
साधर्मिक ४. सूक्ष्म सम्पराय चारित्र साधर्मिक ५. यथाख्यात चारित्र साधर्मिक। मतान्तर से चारित्र साधर्मिक के तीन प्रकार
भी मिलते हैं-१. क्षायिक चारित्र साधर्मिक २. क्षायोपशमिक चारित्र साधर्मिक ३. औपशमिक चारित्र साधर्मिक। ५. चतुर्विध अभिग्रह साधर्मिक-१. द्रव्य अभिग्रह साधर्मिक २. क्षेत्र अभिग्रह साधर्मिक ३. काल अभिग्रह साधर्मिक ४. भाव
अभिग्रह साधर्मिक। ६. द्वादशविध भावना साधर्मिक-१. अनित्य भावना साधर्मिक २. अशरणत्वभावना साधर्मिक ३. एकत्वभावना साधर्मिक
४. अन्यत्वभावना साधर्मिक ५. अशुचित्वभावना साधर्मिक ६.संसारभावना साधर्मिक ७. आश्रवभावना साधर्मिक ८. संवरभावना साधर्मिक ९. निर्जराभावना साधर्मिक १०.लोकविस्तारभावना साधर्मिक ११. धर्मभावना साधर्मिक १२. बोधिदुर्लभत्वभावना साधर्मिक।
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