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अनुवाद
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७३/८. जो श्रावक दसवीं श्रावक प्रतिमा में हैं, वे सशिखा-केशसहित होते हैं। वे प्रवचन से साधर्मिक होते हैं, लिंग–वेशभूषा से नहीं। निह्नव लिंग से साधर्मिक होते हैं परन्तु प्रवचन से नहीं। ७३/९. जो विभिन्न क्षायिक आदि सम्यक्त्व से युक्त श्रावक और साधु होते हैं, वे प्रवचन से साधर्मिक हैं, दर्शन से नहीं। तीर्थंकर और प्रत्येकबुद्ध दर्शन से साधर्मिक हैं, प्रवचन से नहीं। ७३/१०. इसी प्रकार ज्ञान और चारित्र का भी प्रवचन के साथ संबंध जानना चाहिए, प्रवचन से साधर्मिक किन्तु अभिग्रह से नहीं; जैसे- श्रावकों और मुनियों के अभिग्रह भिन्न-भिन्न होते हैं। ७३/११. निह्नव, तीर्थंकर और प्रत्येकबुद्ध-ये तीनों अभिग्रह से साधर्मिक होते हैं, प्रवचन से नहीं। इसी प्रकार प्रवचन और भावना की चतुर्भंगी जाननी चाहिए। अब शेष चतुर्भंगी के उदाहरण कहूंगा। ७३/१२. इसी प्रकार लिंग साधर्मिक, दर्शन साधर्मिक आदि पदों के साथ भी लिंग आदि प्रत्येक पद उपरितन अर्थात् दर्शन, ज्ञान आदि पदों की चतुर्भंगी के साथ संयुति करनी चाहिए। जो चतुर्भगियां उदाहरण की अपेक्षा से अन्य के सदृश नहीं हैं, उनको छोड़कर शेष विकल्पों को इसी प्रकार जानना चाहिए। ७३/१३. लिंग से साधर्मिक, दर्शन से नहीं, चतुर्भंगी के इस भंग में विभिन्न दर्शन वाले निह्नव और प्रतिमाधारी श्रावक आते हैं। इनके लिए बनाया गया आहार साधु के लिए कल्पनीय है लेकिन साधु के लिए बनाया हुआ नहीं। दर्शन से साधर्मिक लिंग से नहीं, इस दूसरे भंग में प्रत्येकबुद्ध, तीर्थंकर तथा सामान्य श्रावक आते हैं। इनके लिए बनाया गया आहार मुनि के लिए कल्पनीय है।
१. प्रवचन और लिंग के आधार पर बनने वाली चतुर्भंगी इस प्रकार है
• प्रवचन से साधर्मिक, लिंग से नहीं। • लिंग से साधर्मिक, प्रवचन से नहीं। • प्रवचन से साधर्मिक, लिंग से भी साधर्मिक। • न प्रवचन से साधर्मिक और न ही लिंग से साधर्मिक। व्यवहारभाष्य में इस गाथा की संवादी गाथा इस प्रकार मिलती है
लिंगेण उ साहम्मी, नोपवयणतो य निण्हगा सव्वे।
पवयणसाधम्मी पुण, न लिंग दस होंति ससिहागा ॥ व्यभा ९९१ टीकाकार इस गाथा की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि एक साधु या श्रावक क्षायोपशमिक दर्शन से युक्त है और दूसरा
औपशमिक या क्षायिक सम्यक्त्व से युक्त है तो वे परस्पर प्रवचन से साधर्मिक हैं, दर्शन से नहीं (मवृ प. ५६)। ३. जैसे लिंग और दर्शन के जो चार भंग उदाहरण सहित कहे गए हैं (गा. ७३/१३) उदाहरण की अपेक्षा से वैसे ही विकल्प लिंग और ज्ञान तथा लिंग और चरण के भी होते हैं। उन्हें छोड़कर लिंग और दर्शन तथा लिंग और अभिग्रह के विकल्पों
को कहना चाहिए। ४. नियुक्तिकार ने केवल दो भंगों का उल्लेख किया है। शेष दो भंगों के उदाहरणों की व्याख्या टीकाकार ने की है। लिंग से
साधर्मिक तथा दर्शन से समान दर्शन वाले, इस भंग में साधु और एकादश प्रतिमाधारक श्रावक आते हैं। इसमें श्रावक के लिए कृत आहार कल्पनीय है, साधु के लिए कृत अकल्प्य है। चतुर्थ भंग में न लिंग से साधर्मिक न दर्शन से, इसमें प्रत्येकबुद्ध, तीर्थंकर और प्रतिमा रहित श्रावक आते हैं। इनके लिए कृत आहार साधु के लिए कल्पनीय है। टीकाकार ने लिंग और ज्ञान तथा लिंग और चारित्र आदि की चतुर्भगियों का भी विस्तृत वर्णन किया है (विस्तार हेतु देखें मवृप. ५७,५८)।
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