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पिंडनिर्युक्ति
११७. जिस पात्र में आधाकर्म आहार आदि ग्रहण किया हुआ है, उस पात्र को झटक कर आधाकर्म आहार के सारे कण निकाल लिए किन्तु उस पात्र की कल्पत्रय से शुद्धि किए बिना यदि दूसरा अशन आदि उसमें लिया जाता है तो वह सूक्ष्मपूति है । उस पात्र को कल्पत्रय से धोने पर सूक्ष्मपूति का परिहार हो सकता है।
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११७/१. (शिष्य पूछता है - ) कदाचित् जिस पात्र में आधाकर्म ग्रहण किया है, उसका परित्याग करके उसे धोने पर भी वह सर्वथा आधाकर्म के अवयवों से रहित नहीं होता क्योंकि अन्न की गंध तो आती ही रहती है। यह तथ्य है कि बिना द्रव्य के गंध आदि गुण नहीं होते अतः सूक्ष्मपूर्ति की शुद्धिपरिहार कैसे हो सकता है ?
११७/२. (आचार्य कहते हैं ) - लोक में भी यह देखा जाता है कि दूर से आती अशुचि गंध से विपरिणत – स्पृष्ट होने पर भी किसी द्रव्य को दूषित नहीं माना जाता । विष के अवयव भी दूर जाकर पर्यायान्तर में परिणत होने से किसी को मार नहीं सकते। (इसी प्रकार आधाकर्म संबंधी गंध के पुद्गलों से चारित्र विकृत नहीं होता और न ही आधाकर्म संस्पर्श जनित दोष लगता है ।)
११७/३. ईंधन के धूम आदि अवयवों से व्यतिरिक्त शेष आधाकर्मिक शाक, लवण आदि से स्थाली में जितना अशन आदि स्पृष्ट होता है, उतना ही पूति होता है। तीन लेपों तक पूर्ति होती है। कल्पत्रय के बाद उस पात्र में पकाया हुआ अन्न कल्पता है अर्थात् तीन बार प्रक्षालित करने पर पकाया हुआ आहार कल्पता है।
११७/४. ईंधन के चार अवयवों को छोड़कर शेष अशन, पान आदि पूति होने के योग्य होते हैं । उनका परिमाण त्वक् प्रमाण से आरंभ होता है । त्वक् मात्र भी यदि आधाकर्म से स्पृष्ट तो सारा अशन पूति हो जाता है।
११८. जिस घर में जिस दिन आधाकर्म किया जाता है, उस दिन वह आहार आधाकर्म है। शेष तीन दिन पूति होती है। पूर्ति के तीन दिनों मुनि को वहां आहार लेना नहीं कल्पता । यदि साधु का पात्र पूतिभूत है तो तृतीय कल्प के बाद लिया जाने वाला अशन आदि कल्पता है ।
१. टीकाकार मलयगिरि इस गाथा की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि पात्र में जो गंध आती है, वह सूक्ष्म पूर्ति है । यह केवल प्रज्ञापना करने के लिए है, इसका परिहार संभव नहीं है क्योंकि गंध के पुद्गल समग्र लोक में व्याप्त हैं। गंध के परमाणु चारित्र का नाश करने में समर्थ नहीं हैं ( मवृ प. ८६, ८७) ।
२. तीन लेपों तक पूति होती है, इसकी व्याख्या करते हुए टीकाकार मलयगिरि कहते हैं कि एक बर्तन में आधाकर्म भोजन पकाया । उसको किसी दूसरे बर्तन में निकालकर अंगुलि से साफ कर दिया, यह एक लेप है। इसी प्रकार तीन बार साफ करके पकाने तक वह आहार पूर्ति कहलाता है। उसी बर्तन में चौथी बार पकाया गया आहार पूति नहीं होता। अथवा उसी बर्तन में कल्पत्रय - तीन बार प्रक्षालन किए बिना शुद्ध आहार पकाया तो वह पूर्ति आहार है। तीन बार धोने पर उस पात्र में पकाया गया आहार शुद्ध होता है (मवृ प. ८७ ) 1
३. ईंधन (अंगारा), धूम, गंध और वाष्प ।
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