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अनुवाद
ग्रहण कर सकता है, (यह आचीर्ण उद्भिन्न है ।) जिस पात्र को वस्त्र से ढ़ककर गांठ दी जाती है, वह गांठ यदि प्रतिदिन खोली और बांधी जाती है तथा जो जतु (लाख) से मुद्रित नहीं है, उसको खोलकर देना भी चीर्ण उद्भिन्न है।
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१६५. मालापहत के दो प्रकार हैं- जघन्य और उत्कृष्ट । पैरों के अग्रभाग पर ऊर्ध्वस्थित होकर ऊपर से दी जाने वाली भिक्षा जघन्य मालापहृत है तथा निःसरणी आदि पर चढ़कर ऊपर से उतारकर देना उत्कृष्ट मालापहत है।
१६६. जघन्य मालापहृत में भिक्षु का तथा उत्कृष्ट मालापहृत में गेरुक का दृष्टान्त है । जघन्य मालापहृत में सर्प का डसना तथा उत्कृष्ट मालापहृत में ऊपर से नीचे गिरना आदि दोष होते हैं ।
१६६/१,२. गृहस्वामिनी को मालापहृत भिक्षा लाते देख साधु वहां से बिना भिक्षा लिए लौट गया। उसी समय वहां बौद्ध साधु आया । भिक्षा न लेने का कारण पूछने पर बौद्ध भिक्षु बोला-' इन्होंने कभी किसी को दान नहीं दिया (इसलिए इनको अच्छी भिक्षा की प्राप्ति नहीं होती ।) माले में रखे घड़े में मोदक की सुगंध
एक सांप उसमें घुस गया और उसके हाथ को डस लिया। दूसरे दिन वही जैन साधु वहां भिक्षार्थ आया । (गृहस्वामी ने कहा - ) आप निर्दय हैं ( क्योंकि आपने जानते हुए भी नहीं बताया कि ऊपर सांप है ।) साधु ने यथार्थ बात बताई, जिससे उनको सम्बोधि प्राप्त हो गई ।'
१६७. आसंदी, पीढक, मंचक, यंत्र (ब्रीहि आदि दलने का यंत्र) ऊखल आदि साधनों पर चढ़कर ऊपर रखी हुई वस्तु उतारते समय दात्री नीचे गिर सकती है। इससे स्वयं के अवयवों का विनाश तथा पृथ्वी पर रहे जीवों का विघात हो सकता है। इसके अतिरिक्त द्रव्य-प्राप्ति का व्यवच्छेद हो जाता है। मुनि के प्रति प्रद्वेषभाव होता है। प्रवचन की अप्रभावना होती है कि इन मुनियों को दान देने से अमुक गृहिणी मर गई । लोगों में यह अज्ञानवाद फैलता है कि ये मुनि होने वाले अनर्थ को पहले नहीं जान सके ।
१६८. इसी प्रकार उत्कृष्ट मालापहत के भी अनेक दोष हैं । भिक्षार्थ गए मुनि ने मालापहत भिक्षा का निषेध कर दिया । अन्य भिक्षु को भिक्षा देने हेतु गर्भवती गृहस्वामिनी निः श्रेणी से ऊपर चढ़ी। (नीचे रखे ब्रीहिदलनक यंत्र की कील से) नीचे गिरने से स्त्री की कुक्षि फट गई और गर्भ बाहर आ गया । वह स्त्री उसी समय कालगत हो गई। दूसरे दिन मुनि को कारण पूछने पर उन्होंने यथार्थ बात बताई। गृहस्वामी को संबोधि प्राप्त हो गई ।
१६९. अथवा मालापहृत के तीन प्रकार होते हैं-ऊर्ध्व मालापहृत, अधः मालापहृत, तिर्यक् मालापहृत । ऊपर छींके आदि से उतार कर देना ऊर्ध्व मालापहृत है। नीचे भूमिगृह भोंहरे आदि से लाकर देना अधः मालापहत है तथा बहुत ऊंचे कुंभ आदि से देना तिर्यक् मालापहृत है ।
१. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३, कथा सं. २२ ।
२. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३, कथा सं. २३ ।
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