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पिंडनियुक्ति
७६. गांव में कोद्रव और रालक दो प्रकार के धान्यों की प्रचुरता थी अतः भिक्षा में वे ही द्रव्य मिलते थे। साधुओं के स्वाध्याय के योग्य रमणीय वसति थी। क्षेत्र-प्रतिलेखना हेतु साधुओं का आगमन। श्रावकों ने पूछा-'क्या यह क्षेत्र आचार्य के चातुर्मास योग्य है ?' साधुओं ने ऋजुता से सब कुछ कहा७६/१. क्षेत्र गण के योग्य है लेकिन गुरु के चातुर्मास योग्य नहीं है क्योंकि यहां आचार्य के योग्य शाल्योदन नहीं है। यह सुनकर श्रावक ने शालि बीजों का वपन किया और स्वजनों के घर शालि को बंटवा दिया। ७६/२, ३. समय बीतने पर वे या कुछ अन्य मुनि विहार करते हुए उस गांव में आए और भिक्षार्थ गए। वे एषणा से युक्त थे। उन्होंने बालकों के मुख से यह चर्चा सुनी। कुछ बालक कह रहे थे-'ये वे साधु हैं, जिनके लिए घर-घर में शाल्योदन बना है।' दूसरा बोला-' मां ने मुझे साधु-संबंधी शाल्योदन दिया।' एक दानदात्री बोली-'मैंने परकीय शाल्योदन दिया, अब मैं अपना भी देना चाहती हूं।' कोई बालक बोला'मुझे साधु-संबंधी शाल्योदन दो।' एक दरिद्र बोला-'यहां ओदन का अभाव था अतः अवसर पर शाल्योदन हो गया।' ७६/४. (दो भाइयों में छोटे भाई की पत्नी की मृत्यु हो गई) बड़े भाई की पत्नी ने देवर से कहा-'मेरे पति तथा तुम्हारी पत्नी की मृत्यु हो गई है अत: मैं तुम्हारी पत्नी बनना चाहती हूं, यह 'थक्के थक्कावडिय' अर्थात् अवसर पर अवसर के अनुरूप घटित होने का उदाहरण है।" ७६/५. एक बालक बोला-'मां! तुम साधुओं को तण्डुलोदक दो।' दूसरा बोला-'तुम साधुओं को शालिकाञ्जिक दो।' बच्चों के मुख से यह बात सुनकर साधुओं ने पूछा-'यह क्या बात है?' सारी बात जानकर साधुओं ने आधाकर्म आहार जानकर उन घरों का वर्जन कर दिया और अन्य घरों में भिक्षार्थ घूमने लगे।
७७. एक गांव में सारे कूएं खारे पानी के थे। एक बार एक श्रावक ने मीठे पानी का कुआं खुदवाकर उसको तब तक फलक आदि से ढ़ककर रखा, जब तक वहां साधु नहीं आ गए। ७८. ककड़ी, आम, अनार, अंगूर तथा बिजौरा आदि खादिम वस्तुओं के विषय में पापकरण की प्रवृत्ति हो सकती है। त्रिकटुक आदि स्वादिम वस्तुओं के लिए भी श्रावक अनेक पापकारी प्रवृत्तियां कर लेता है। ७९. चारों प्रकार के अशन, पान आदि जो सचित्त हैं, उनको साधुओं के ग्रहण योग्य बनाना अर्थात् प्रासुक करना 'निष्ठित' कहलाता है। इन चारों को उपस्कत करने का प्रारंभ करना 'कत' कहलाता है।
यहां ग्रंथकार ने थक्के थक्कावडियं-अवसर पर अवसर के अनुरूप कार्य होना को स्पष्ट करने के लिए बीच में ही एक
लौकिक घटना का उदाहरण दे दिया है। यहां बालकों की चर्चा के प्रसंग में यह अप्रासंगिक सा लगता है। २. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३ कथा सं. ८।। ३. यह पानक संबंधी आधाकर्म का उदाहरण है। कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३ कथा सं. ९। ४. त्रिकटुक-सौंठ, पीपल, कालीमिर्च आदि।
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