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अनुवाद
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९५/१. शिष्य ने पूछा-'इस प्रकार के ओघ औद्देशिक को छद्मस्थ कैसे जान सकता है ?' गुरु ने कहा'गृहस्थ के शब्द एवं चेष्टाओं में दत्तावधान होकर जाना जा सकता है।' ९५/२. (मुनि के भिक्षार्थ प्रवेश करने पर पति ने भिक्षा के लिए कहा तो पत्नी बोली-)प्रतिदिन दी जाने वाली पांचों भिक्षाचरों को भिक्षाएं दी जा चुकी है अथवा वह भिक्षा की गणना हेतु भित्ति पर रेखाएं करती है
और भिक्षा देती हुई उनकी गणना करती है। अथवा कोई स्त्री किसी के सम्मुख कहती है-'उद्दिष्ट दत्ती से भिक्षा दो, यहां से नहीं।' अथवा विवक्षित घर में साधु के भिक्षार्थ प्रवेश करने पर वह कहती है-'इतनी भिक्षा पृथक् कर दो। ९६. भिक्षा के लिए गया हुआ मुनि शब्द, रूप, रस आदि में मूर्च्छित न हो। वह केवल एषणा में दत्तावधान हो, जैसे बछड़ा गोभक्त-चारा-पानी के प्रति दत्तावधान होता है। ९६/१, २. घर में विवाह का उत्सव होने पर चारों पुत्रवधुएं अपने मण्डन-प्रसाधन में व्यस्त हो गईं। किसी ने बछड़े को चारा-पानी नहीं दिया। अपराह्न में सेठ घर आया। उसे देखकर बछड़े ने चिल्लाना प्रारम्भ कर दिया। उसे भूखा जानकर सेठ ने बहुओं को डांटा। बहुएं पांच प्रकार के विषय-सुख को प्रदान करने वाली खानि-खदान की भांति थीं। घर भी उनसे अधिक अलंकृत किया गया था लेकिन वह बछड़ा किसी में गृद्ध और मूर्च्छित नहीं हुआ। केवल गोभक्त-चारा-पानी खाने में तल्लीन रहा। ९६/३. मुनि को भिक्षा देने के लिए गृहनायिका का गमन, भिक्षा योग्य द्रव्य लेकर साधु के सम्मुख आगमन, बर्तनों को खोलना, रखना आदि कार्य होने पर मुनि गृहनायिका के भाषण के प्रति श्रोत्र आदि इंद्रियों से दत्तावधान होकर बछड़े की भांति तन्मना होकर एषणा और अनेषणा को सम्यक् प्रकार से जानता
९६/४. किसी बड़े जीमनवार (संखडी) में शाल्योदन, व्यंजन आदि को प्रचुर मात्रा में बचा हुआ जानकर गृहनायक अपने सेवकों से कहता है-'यह सारा बचा हुआ द्रव्य पुण्य के लिए भिक्षाचरों को दे दो।' ९७. विभाग औद्देशिक के चार प्रकार हैं-औद्देशिक, समुद्देशिक, आदेश और समादेश। प्रत्येक के 'उद्दिष्ट' 'कृत' और 'कर्म'-ये तीन भेद होते हैं। तीन से चार का गुणा करने पर विभाग औद्देशिक बारह प्रकार का होता है। ९८, ९९. जितने भिक्षाचरों के संकल्प से आहार-पानी बनाया जाता है, वह उद्दिष्ट है, पाषंडियों (अन्य दर्शनी) को देने के लिए निर्मित आहार समुद्देश अथवा समुद्देशिक कहलाता है, श्रमणों को देने के लिए बनाया गया आदेश तथा निर्ग्रन्थों को देने के लिए परिकल्पित आहार समादेश कहलाता है। इन प्रत्येक के
१. इन सब आलाप-संलापों को सुनकर या दीवार पर खिंची रेखाओं को देखकर छद्मस्थ साधु भी जान सकता है कि यह ओघ
औद्देशिक भिक्षा है (मवृ प.७८)।। २. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३, कथा सं. १६।
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