________________
१३०
पिंडनियुक्ति
हैं। अशन, पान, खादिम, स्वादिम-इन चारों प्रकार के आहार हेतु आधाकर्म शब्द का प्रयोग करना तीसरा भंग है (नाना अर्थ एक व्यञ्जन)। आधाकर्म के प्रसंग में चौथा भंग (नाना अर्थ नाना व्यञ्जन) शून्य है।' ७०/६. जैसे पुरन्दर आदि शब्द इन्द्र के अर्थ का अतिक्रमण नहीं करते, वैसे ही अध:कर्म, आत्मघ्न आदि शब्द भी आधाकर्म के अर्थ का अतिक्रमण नहीं करते। ७१. आधाकर्म का उपभोग करने वाला अपनी आत्मा का अध: पतन करता है (अतः इसका एक नाम अध:कर्म है) वह प्राण और भूतों के हनन के साथ आत्मा के चारित्र आदि गुणों का नाश करता है इसलिए इसका एक नाम आत्मघ्न है। आधाकर्म लेने वाला परकर्म-पाचक आदि के पाप कर्म को स्वयं आत्मसात् करता है अत: इसका एक नाम आत्मकर्म है। ७२. शिष्य द्वारा प्रश्न पूछने पर कि किस पुरुष विशेष के लिए किया हुआ कर्म आधाकर्म कहलाता है? इसका उत्तर है कि साधर्मिक के लिए किया हुआ कर्म आधाकर्म होता है इसलिए साधर्मिक शब्द की विधिपूर्वक प्ररूपणा करनी चाहिए। ७३. साधर्मिक' के बारह प्रकार हैं१. नाम साधर्मिक
७. लिंग साधर्मिक २. स्थापना साधर्मिक
८. दर्शन साधर्मिक ३. द्रव्य साधर्मिक
९. ज्ञान साधर्मिक ४. क्षेत्र साधर्मिक
१०. चारित्र साधर्मिक ५. काल साधर्मिक
११. अभिग्रह साधर्मिक ६. प्रवचन साधर्मिक
१२. भावना साधर्मिक ७३/१-३. नाम साधर्मिक - समान नाम वाला व्यक्ति।
स्थापना साधर्मिक - काठ की प्रतिमा, अक्ष आदि में साधर्मिक की स्थापना । द्रव्य साधर्मिक - प्रवर्द्धमान शरीर होने पर भविष्य में यह साधु का साधर्मिक होगा
(अथवा साधर्मिक का मृत शरीर) क्षेत्र साधर्मिक - समान क्षेत्र में उत्पन्न। काल साधर्मिक - समान काल में उत्पन्न ।
१. यद्यपि यहां चौथा भंग शून्य है लेकिन टीकाकार के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अशन के लिए आधाकर्म, पानक के लिए
अध:कर्म, खादिम के लिए आत्मघ्न तथा स्वादिम के लिए आत्मकर्म का प्रयोग करे तो ये नाम नाना अर्थ और नाना व्यञ्जन वाले हो जाते हैं। इस दृष्टि से चरम भंग भी प्राप्त हो सकता है (मवृ प.५१)। २. निशीथ भाष्य में तीन प्रकार के साधर्मिकों का उल्लेख है-१. लिंग साधर्मिक २. प्रवचन साधर्मिक ३. लिंग-प्रवचन
साधर्मिक। वहां वैकल्पिक रूप से साधर्मिक के तीन-तीन भेद और किए हैं-१. साधु २. पार्श्वस्थ ३. श्रावक। दूसरा विकल्प है-१. श्रमण २. पार्श्वस्थ श्रमण ३. श्रावक (निभा ३३६ चू. पृ. ११७)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org