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पिंडनियुक्ति
६८/७,८. चोर गायों का अपहरण कर अपने ग्राम की ओर जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने कुछेक गायों को मारकर मांस पकाकर खा लिया। मांस के उपभोक्ता, मांस को परोसने वाले परिवेषक तथा वहां बैठे हुए अन्य पथिक-इन सबको चोर पकड़ने वाले राजपुरुषों ने पकड़ लिया। मांस को परोसने वाले तथा मांस के भाजनों को धारण करने वाले भी राजपुरुषों द्वारा बंधन को प्राप्त हुए फिर मांस खाने वालों का तो कहना ही क्या? (इसी प्रकार आधाकर्म आहार को परोसने वाले और उस पात्र को धारण करने वाले मुनि भी तीव्र कर्म-बंधन को प्राप्त करते हैं फिर आधाकर्मभोजी की तो बात ही क्या है ?) ६८/९. राजकुमार ने पिता के वध हेतु सहायक भटों के साथ मंत्रणा की। कुछ सुभट बोले कि हम पिता के वध में सहायक बनेंगे, कुछ सुभट मौन रहे। राजकुमार तथा दोनों प्रकार के सुभट प्रतिश्रवण दोष के भागी हैं। जिन्होंने राजा को कहा, वे इस दोष के भागी नहीं हैं। ६८/१०,११. एक साधु ने चार मुनियों को आधाकर्म आहार करने के लिए निमंत्रित किया। एक साधु उसे खाने लगा। दूसरा बोला-'मैं नहीं खाता, तुम खाओ।' तीसरा मुनि मौन रहा। चौथे ने उसका प्रतिषेध किया। इनमें प्रथम तीन मुनि प्रतिश्रवण दोष के भागी हैं तथा प्रतिषेध करने वाला मुनि उस दोष से मुक्त है। प्रस्तुत प्रसंग में आधाकर्म लाने वाला तथा भोक्ता-दोनों कायिक क्रिया के दोषी हैं। दूसरा वाचिक दोष का भागी है, तीसरा मानसिक दोष से दुष्ट है तथा चौथा तीनों दोषों से विशुद्ध है। ६९. पितृमारक राजपुत्र के प्रतिषेवण', प्रतिश्रवण, संवास तथा अनुमोदना-ये चारों दोष घटित होते हैं। इसी प्रकार आधाकर्म का उपभोग करने वाले मुनिजन के साथ सारे दोषों की संयोजना करनी चाहिए। ६९/१. चोरों की पल्ली पर (राजा द्वारा) आक्रमण करने पर कुछ चोर भाग गए, कुछ वणिकों ने हम चोर नहीं हैं, ऐसा सोचकर पलायन नहीं किया। चोरों के साथ संवास करने के कारण उन्हें अपराधी मानकर राजा ने उनको दंडित किया। ६९/२. इसी प्रकार आधाकर्म भोजन का उपभोग करने वाले मुनियों के साथ संवास करने वाले भी दोषी होते हैं। आधाकर्म भोजन का अवलोकन, उसकी गंध और उसकी परिचर्चा रूक्षवृत्ति वाले तथा आधाकर्म का परिहार करने वाले मुनि को भी प्रभावित कर देती है अर्थात् वह मुनि भी उस भोजन के परिभोग की वाञ्छा करने लगता है।
१. कथा के विस्तार हेतु देखें परि.-३, कथा सं. ४। २. कथा के विस्तार हेतु देखें परि.-३, कथा सं. ५। ३. प्रतिषेवण करने वाले के चारों दोष लगते हैं। प्रतिश्रवण करने वाले के तीन, संवास करने वाले के दो तथा अनुमोदन करने ___ वाले के एक दोष लगता है (मवृ प. ४८)। ४. कथा के विस्तार हेतु देखें परि.-३, कथा सं.६। ५. दर्शनगंधपरिकथा-ये तीन शब्द हैं, इनका अर्थ है-आधाकर्म भोजन का अवलोकन, उस भोजन की गंध तथा उसकी
परिचर्चा।
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