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अनुवाद
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८. आठ प्रवचन-माता। ९. नौ ब्रह्मचर्य की गुप्तियां।
१०. दस प्रकार का श्रमणधर्म। ४४/४. अप्रशस्त भावपिंड के दस प्रकार हैं
१. असंयम। २. अज्ञान तथा अविरति। ३. अज्ञान, अविरति और मिथ्यात्व। ४. क्रोध, मान, माया और लोभ । ५. पांच आश्रव। ६. षट्कायवध। ७. सात प्रकार के कर्म निबंधनभूत अध्यवसाय। ८. आठ प्रकार के कर्म निबंधनभूत परिणाम। ९. ब्रह्मचर्य की नौ अगुप्तियां।
१०. अधर्म-दस प्रकार के श्रमण धर्म के प्रतिपक्ष। ४५. जिस भावपिंड से कर्म का बंध होता है, वह अप्रशस्त भावपिंड है। जिस भावपिंड से कर्म-बंधन से मुक्ति मिलती है, वह प्रशस्त भावपिंड है। ४५/१. ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि के जितने पर्याय होते हैं, वे अपनी-अपनी आख्या (जैसे ज्ञान के पर्याय, दर्शन के पर्याय आदि) से पर्यव प्रमाण से पिंड हो जाते हैं।
१. ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियां इस प्रकार हैं
• स्त्री, पशु, नपुंसक रहित विविक्त शय्या। • स्त्री-कथा का वर्जन। • काम-कथा का वर्जन। •दृष्टि-संयम (स्त्री के मनोहारी रूप को न देखना)।
प्रणीत रस युक्त आहार का परित्याग। • अतिमात्रा में आहार का वर्जन। • पूर्व भुक्त भोग की स्मृति न करना। • शब्द, रूप आदि में आसक्त न होना।
• साता और सुख में प्रतिबद्ध न होना। (ठाणं ९/३) २. आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों के कारणभूत कषाययुक्त या कषायरहित परिणाम विशेष (मवृ प. २६)। ३. आठ कर्मों के कारणभूत कषाययुक्त परिणाम विशेष (मवृ प. २६)। ४. ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियों के विपरीत आचरण करना अगुप्ति है। देखें टिप्पण नं. १ ५.विशेष विवरण के लिए देखें-मवृ प. २६, २७।
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