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पिंडनियुक्ति
४६. जिस भाव विशेष से चिकने कर्मों का पिंड बंधता है, वह भावपिंड है क्योंकि वह भाव विशेष कर्मों को आत्मा के साथ संबद्ध करता है। ४७. इस पिंडनियुक्ति में अचित्त द्रव्यपिंड एवं प्रशस्तभावपिंड का प्रसंग है। शेष नाम आदि पिंड प्रतिपादित अर्थ के तुल्य हैं। शिष्य की मति को व्युत्पन्न करने के लिए इनका प्रतिपादन किया गया है। ४८. अचित्त द्रव्यपिंड के तीन प्रकार हैं-आहाररूप, उपधिरूप तथा शय्यारूप। ये तीनों प्रशस्तभावपिंड के उपकारक हैं, आधारभूत हैं। प्रस्तुत प्रकरण में उद्गम आदि आठ स्थानों से शुद्ध आहाररूप अचित्त द्रव्यपिंड का प्रयोजन है। ४९. निर्वाण कार्य है, उनके तीन कारण हैं-ज्ञान, दर्शन और चारित्र। निर्वाण के इन कारणों का कारण है-आहार। ४९/१. जैसे तन्तु पट के कारण हैं, तन्तुओं का कारण है-पक्ष्म, वैसे ही मोक्ष कार्य है, उसके कारण हैंज्ञानादित्रिक और इनका कारण है-आहार। ४९/२. जैसे अनुपहत कारण सम्पूर्ण कार्य को निष्पन्न करता है, वैसे ही मोक्ष-कार्य की सिद्धि के लिए अविकल ज्ञान आदि कारण साधन होते हैं। ५०. इस प्रकार मैंने संक्षेप में पिंड शब्द का अभिधेय मात्र प्रतिपादित किया है। अब इससे आगे एषणा का स्पष्ट तथा विकट-सूक्ष्ममति द्वारा गम्य अर्थ को प्रकट करूंगा। ५१. एषणा के ये एकार्थक नाम हैं-एषणा, गवेषणा, मार्गणा, उद्गोपना।' ५२. एषणा शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। द्रव्य और भाव एषणा के तीन-तीन प्रकार हैं। ५२/१. एषणा, गवेषणा आदि के उदाहरण इस प्रकार हैं
• कोई व्यक्ति पुत्र के जन्म की एषणा-इच्छा करता है, यह एषणा है। . • कोई व्यक्ति खोए हुए पुत्र की खोज करता है, यह गवेषणा है। • कोई व्यक्ति पदचिह्नों के आधार पर शत्रु की खोज करता है, यह मार्गणा है।
• कोई अपने शत्रु की मृत्यु को प्रकाशित करता है, यह उद्गोपना है। १. टीकाकार के अनुसार एषणा आदि चारों पद एकार्थक हैं फिर भी इन चारों में नियत अर्थ-भेद है।
• एषणा-इच्छा मात्र की अभिव्यक्ति। • गवेषणा-अनुपलब्ध पदार्थ की सर्वतः खोज। • मार्गणा-निपुण बुद्धि से उस पदार्थ की अन्वेषणा। • उदगोपना-विवक्षित पदार्थ जनता के बीच प्रकट करना। इन शब्दों की स्पष्टता हेतु देखें ५२/१ का अनुवाद)
(मवृ प. २९)। २. द्रव्य एषणा के तीन प्रकार हैं-सचित्त द्रव्य विषयक, अचित्त द्रव्य विषयक तथा मिश्र द्रव्य विषयक। भाव एषणा के तीन
प्रकार हैं-गवेषणा, ग्रहणैषणा तथा ग्रासैषणा।
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