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पिंडनियुक्ति
३/१. जैसे चार सेतिका प्रमाण एक कुलक में उसका चतुर्थभाग (एक सेतिका) नियमत: विद्यमान है, वैसे ही छह निक्षेपों में चार निक्षेप नियमतः विद्यमान हैं इसलिए छह निक्षेप करने चाहिए। ४. पिंड शब्द के छह निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। ५. नामपिंड के चार प्रकार हैं-गौण', समयकृत, तदुभयज तथा अनुभयज। अब मैं स्थापना पिंड के बारे में कहूंगा। ६. स्थापनापिंड दो प्रकार का है-सद्भावस्थापना पिंड तथा असद्भावस्थापना पिंड। उनके उदाहरण हैं-अक्ष, वराटक, काष्ठ, पुस्त (मिट्टी का शिल्पकार्य) तथा चित्रकर्म आदि। ७. द्रव्यपिंड तीन प्रकार का है-सचित्त, मिश्र और अचित्त। प्रत्येक प्रकार के फिर नौ-नौ भेद हैं। ८. वे नौ भेद ये हैं-पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय
१. गौण नाम-गुण के अनुरूप नाम रखना, जैसे शक्ति सम्पन्न व्यक्ति का महावीर नाम। यह गुण और क्रिया दोनों के आधार
पर हो सकता है। गाय का नाम गोत्व के आधार पर नहीं अपितु उसकी प्रवृत्ति गमन-क्रिया के आधार पर है, जैसेगच्छतीति गौ। टीकाकार मलयगिरि ने गौण नाम के तीन भेद किए हैं-द्रव्यनिमित्त २. गुणनिमित्त ३. क्रियानिमित्त ।
द्रव्य नाम व्युत्पत्ति निमित्त होता है, जैसे-श्रृंगी, दन्ती आदि (मवृ प. ३,४)। २. समयज-अर्थरहित लेकिन सिद्धान्त में प्रसिद्ध नाम । व्यवहार में तरल पदार्थों के समूह को पिंड नहीं कहा जाता लेकिन
शास्त्र (आयारचूला १/७) में पानी के लिए पिंड शब्द का प्रयोग हुआ है अतः कठिन द्रव्य के संश्लेष के अभाव में भी
पानी का पिंड नाम समय प्रसिद्ध है लेकिन अन्वर्थ युक्त नहीं है, ओदन के लिए प्राभृतिका नाम भी समयज नाम है। ३. तदुभयज-गुणनिष्पन्न और समयप्रसिद्ध नाम, जैसे-धर्मध्वज का नाम है रजोहरण । बाह्य और आभ्यन्तर रज को हरण __ करने के कारण इसे रजोहरण कहा जाता है इसलिए कारण में कार्य का उपचार करके इसका नाम रजोहरण रखा गया है। ४. अनुभयज-अन्वर्थरहित और सिद्धान्त में अप्रसिद्ध नाम। भाष्यकार ने इसके लिए उभयातिरिक्त नाम का उल्लेख किया है। नियुक्तिकार ने नाम का उल्लेख न करके 'अवि' शब्द से इसका ग्रहण किया है, जैसे-शौर्य आदि के अभाव में किसी का नाम सिंह रख देना (मवृ प. ३,४)।
भाष्यकार ने इन चारों नाम की विस्तृत व्याख्या की है। टीकाकार ने एक प्रश्न उपस्थित किया है कि समयकृत और उभयातिरिक्त इन दोनों में विशेष अंतर नहीं है क्योंकि दोनों नाम अन्वर्थ से विकल हैं अत: दो का उल्लेख न करके एक का ही निर्देश किया जा सकता था। इसका उत्तर देते हुए टीकाकार कहते हैं कि जो लौकिक सांकेतिक नाम हैं, उनका व्यवहार सामान्य व्यक्ति करते हैं लेकिन जो सिद्धान्त प्रसिद्ध नाम हैं, उनका व्यवहार सामान्य व्यक्ति नहीं करते, जैसे भोजन के लिए 'समुद्देश' शब्द का प्रयोग अत: दोनों का पृथक् उल्लेख किया गया है। इसी प्रकार गौण और समयकृत दोनों ही अन्वर्थ युक्त नाम हैं लेकिन गौण नाम का प्रयोग सामान्य व्यक्ति करते हैं तथा समयकृत का सामान्य
व्यक्ति नहीं अपितु सामयिक ही करते हैं (मवृ प.६)। ५. अनेक वस्तुओं को एक साथ एकत्रित करके स्थापित करना सद्भावस्थापना पिंड है तथा जहां केवल एक अक्ष या केवल
वराटक आदि में कल्पना के रूप में पिंड की स्थापना की जाती है, वह असद्भावस्थापना पिंड है। एक अक्ष भी अनेक
परमाणुओं से बना है, इस दृष्टि से वह पिंड ही है (मवृ प. ७)। ६. पिंडनियुक्ति में सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्यपिंड आदि के नौ-नौ भेद किए हैं लेकिन ओघनियुक्ति में पात्र आदि के लिए
लेपपिंड को दसवें अचित्त द्रव्यपिंड के रूप में स्वीकृत किया है (ओनि ३३६; लेवो य दसमो उ)।
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