________________
पिंडनियुक्ति-अनुवाद १. पिंडनियुक्ति के आठ प्रकार हैं-उद्गम, उत्पादन, एषणा, संयोजना, प्रमाण, इंगाल-धूम आदि दोष
और आहार के कारण। २. पिंड शब्द के बारह पर्याय हैं—पिंड, निकाय, समूह, संपिण्डन, पिण्डन, समवाय, समवसरण, निचय, उपचय, चय, युग्म और राशि। ३. पिंड शब्द के चार या छह प्रकार से निक्षेप करने चाहिए। निक्षेप करने के पश्चात् पिंड की प्ररूपणा करनी चाहिए।
१. यह ग्रंथ के अर्थाधिकार की संग्रह गाथा है अत: इसमें पिण्ड से संबधित आठ अर्थाधिकारों का उल्लेख मात्र किया गया
है । इन्हीं अधिकारों की ग्रंथकार ने क्रमशः विस्तृत व्याख्या की है। २. टीकाकार वीराचार्य के अनुसार एकान्त भेद की अपेक्षा कोई भी शब्द किसी शब्द का एकार्थक नहीं हो सकता क्योंकि
सब पदार्थ एक दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं अत: घट शब्द कुट शब्द का एकार्थक नहीं हो सकता। इसी प्रकार एकान्त अभेद पक्ष में भी सब पदार्थ अपने स्वरूप में स्थित हैं अत: घट शब्द का घट शब्द अभिन्न एकार्थक है, कुट आदि एकार्थक नहीं हैं (अव वृ प. १३८)।
पिण्ड शब्द के एकार्थक में बारह शब्दों का उल्लेख है। टीकाकार के अनुसार ये सभी शब्द प्रतिनियत व भिन्नभिन्न समूहों के वाचक हैं लेकिन सामान्य रूप से समूह अर्थ के वाचक होने से इन सभी को एकार्थक माना है। पिंडादयः शब्दा: लोके प्रतिनियत एव संघातविशेषे रूढाः, तथापि सामान्यतो यद् व्युत्पत्तिनिमित्तं संघातत्वमात्रलक्षणं तत् सर्वेषामप्यविशिष्टमिति कृत्वा सामान्यत: सर्वे पिण्डादयः शब्दा एकार्थिका उक्ताः ततो न कश्चिद्दोषः (मवृ प. २)। पिण्ड आदि शब्दों की अर्थ-परम्परा इस प्रकार है
• पिण्ड-बहुत चीजों को मिलाकर एक पिण्ड बनाना। • निकाय-भिक्षुओं का समूह। • समूह-मनुष्यों का समुदाय। • सपिण्डन-तिलपपड़ी में तिलों का परस्पर सम्यक् संयोग। • पिण्डन-वस्तु का संयोग। • समवाय-वणिकों का समूह । •समवसरण-तीर्थंकरों की परिषद, अनेक वादियों का मिलन-स्थल। • निचय-सूअर आदि पशुओं का संघात । • उपचय-पूर्व समूह में वृद्धि होना। • चय-ईंटों की रचना, दीवार आदि बनाना। • युग्म-दो पदार्थों का मिलना, अक्ष युगल का संघात आदि।
• राशि-मूंगफली आदि का ढेर। ३. टीकाकार वीराचार्य ने एक प्रश्न उपस्थित किया है कि युग्म में दो वस्तुओं का संघात होता है अत: उसमें पिंडत्व कैसे
घटित हो सकता है? इसके उत्तर में मान्यता विशेष का उल्लेख करते हुए वे कहते हैं कि जीवनभर साथ रहने वाले दो भारुण्ड पक्षी एक शरीर में रहते हैं अतः इस दृष्टि से वह पिंड हो गया। दूसरी मान्यता का उल्लेख करते हुए टीकाकार कहते हैं कि मुख्य रूप से तीन या तीन से अधिक पदार्थों का मिलन ही पिण्ड कहलाता है लेकिन गौण रूप से भिन्न शरीर वाली दो कपर्दिकाओं का एक स्थान में मिलन भी पिंड कहलाता है (अव वृ प. १३८)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org