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पिंडनियुक्ति
६८.७. गोणीहरण' सभूमी, नेऊणं गोणिओ पहे भक्खे।
निव्विसया परिवेसण', ठिता वि ते कूविया घत्थे ॥ ११९ ॥ ६८/८. जे वि य पडिसेवंती', भायणाणि धरेंति य।
ते वि बज्झंति तिव्वेणं, कम्मुणा किमु भोइणो ? ॥ १२० ॥ ६८/९. सामत्थण रायसुते, पितिवहण सहाय तह य तुण्हिक्का।
तिण्हं पि हु पडिसुणणा, रण्णो सिट्ठम्मि सा नत्थि२ ॥ १२१॥ ६८/१०. भुंज'३ न भुंजे भुंजसु, ततिओ तुसिणीऍ४ भुंजए५ पढमो।
तिण्हं पि हु पडिसुणणा, पडिसेहतस्स सा नत्थि ॥१२२ ॥ ६८/११. आणेत६ भुंजगा कम्मुणा उ बितियस्स वाइओ दोसो।
ततियस्स य माणसिओ, तीहि विमुक्को चउत्थो उ१८ ॥ १२३ ॥ ६९. पडिसेवण पडिसुणणा, संवासऽणुमोदणा य९ चउरो वि।
पितिमारग२० रायसुते, विभासितव्वा२१ जइजणे वि२२ ॥ १२४॥ ६९/१. पल्लीवधम्मि नट्ठा, चोरा वणिया वयं न चोर त्ति।
न पलाया पावकरत्ति२३ काउ रण्णा उवालद्धा२४ ॥ १२५ ॥
१. गोणाह (स)।
१७. विसुद्धो (मु)। २. णेउणिय (अ)।
१८. ६८/१-११-ये ग्यारह गाथाएं भाष्य की होनी चाहिए ३. गोणियओ (स)।
क्योंकि गा. ६८ में नियुक्तिकार ने प्रतिषेवणा, निव्विसिया (अ, बी)।
प्रतिश्रवण आदि चारों पदों की संक्षिप्त व्याख्या ५. परिएसण (ला, स)।
कर दी है तथा इस गाथा का सम्बन्ध सीधा ६९ ६. घित्थे (अ, बी, क), घेत्थे (ला), घत्थे इत्ति वी गाथा से जुड़ता है। ६८/१ में भाष्यकार इन
गृहीताः (मव), कथा के विस्तार हेतु देखें परि. चारों पदों की सोदाहरण व्याख्या प्रस्तुत करने का ३,कथा सं. ४।
संकल्प करते हैं। भाष्यकार की व्याख्या में ६९ वीं ७. परिवेसंती (क, ला)।
गाथा अतिरिक्त प्रतीत होती है। ६८/१-११ तथा ८. भोयणाणि (बी)।
६९/१-४-ये गाथाएं भाष्य की हैं तथा बीच में ९. गाथा में अनुष्टुप् छंद है।
६९ वीं गाथा नियुक्ति की है। इन गाथाओं को १०. सामत्थणं देश्या चिन्ता (अव), सामत्थणं स्वभटैः निगा के क्रमांक में नहीं जोड़ा है। सह पर्यालोचनं (मवृ)।
१९. उ (मु)। ११. रायसुए त्ति तृतीयार्थे सप्तमी (म)।
२०. पियमा (क, मु), पिइमा (अ, बी)। १२. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३,कथा सं. ५। २१. विहासि (अ, बी)। १३. भुंजह (ला, ब)।
२२. य (ला, ब, स)। १४. “णाओ (अ, बी)।
२३. पावरय त्ति (अ, बी)। १५. भुंजई (स)।
२४. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३.कथा सं. ६। १६. आणिंतु (अ, बी), आणंत (मु)।
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