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पिंडनियुक्ति
७३/१४. लिंगेण उ नाभिग्गह; अणभिग्गहवीसुऽभिग्गही चेव।
जइ साग बितियभंगे, पत्तेयबुहा य तित्थगरा ॥ १५२ ॥ ७३/१५. एवं लिंगे भावण, दंसण नाणे य पढमभंगो उ।
___जइ साग वीसुनाणी, एवं चिय बितियभंगो वि॥ १५३ ॥ ७३/१६. दंसण चरणे पढमो, सावग जइणो य बीयभंगो उ।।
जइणो विसरिसदंसी, दंसे य अभिग्गहे वोच्छं ॥ १५४ ॥ ७३/१७. साग जइ वीसऽभिग्गह, पढमो बीओ य भावणा चेव।
नाणेण वि णेज्जेवं, एत्तो चरणेण वोच्छामि ॥१५५ ॥ ७३/१८. जइणो वीसाऽभिग्गह, पढमो बिय निण्ह -साग-जइणो वि।
एवं तु भावणासु वि, वोच्छं दोण्हं ति माणत्तो' ॥ १५६ ॥ ७३/१९. जइणो सावग निण्हग, पढमे बितिए य होंति भंगे य।
केवलनाणे तित्थंकरस्स नो कप्पति कतं तु॥१५७ ॥ ७३/२०. एमेव य लिंगेणं, दंसणमादी उ होंति भंगा उ।
भइएसु उवरिमेसुं, हिट्ठिल्लपदं तु वज्जेज्जा ॥ ७३/२१. पत्तेयबुद्ध-निण्हग', उवासए केवली वि आसज्ज।
खइयादिए य भावे, पडुच्च भंगे तु जोएज्जा ॥ १५८ ॥ ७३/२२. जत्थ उ ततिओ भंगो, तत्थ न कप्पं तु सेसए भयणा।।
'तित्थंकरकेवलिणो, जहकप्पं नो य'११ सेसाणं१२ ॥१५९ ॥ १. गहे (अ), ग्गहा (स)।
नियुक्तिकार निक्षेप परक गाथा की इतनी विस्तृत २. सावग (मु)।
व्याख्या नहीं करते अतः संभव लगता है कि इतनी ३. जयणो (स) सर्वत्र।
विस्तृत व्याख्या भाष्यकार ने की होगी फिर भी ४. वीसुभि (अ, ब)।
टीकाकार मलयगिरि के समय तक ये गाथाएं नियुक्ति ५. माणत्ता (ब)।
गाथा के रूप में प्रसिद्ध हो गई थीं। गा. ७३/९ में ६. बीए (अ, बी, क, स)।
मलयगिरि ने 'स्वयमेव श्रोतारो ऽभोत्स्यन्ते इति बुद्ध्या ७. जह (टीपा, ब, स)।
नियुक्तिकृन्नोदाहृतवान्' तथा गा. ७३/१४ में 'लिंगछडेज्जा (जीभा ११४२), यह गाथा केवल क प्रति दर्शन चतुर्भंगिकाद्यद्वयसदृशानीति कृत्वा नियुक्तिकृन्नोमें मिलती है।
दाहरति' का उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट है कि ९. निण्हव (मु), निण्हय (क)।
ये गाथाएं नियुक्ति के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। १०.व्यभा ९९४, तु. जीभा ११४४।
व्याख्यात्मक होने के कारण इनको निगा के क्रमांक ११. तित्थकर (बी), तित्थगरनिण्हओवासगादि कप्पे ण में नहीं रखा है। मूलद्वार गा. के 'कस्स' द्वार की (जीभा ११४५)।
व्याख्या गा. ७३ में तथा किं द्वार की व्याख्या ७५ में १२.७३/१-२२-ये बावीस गाथाएं ७३ वीं गाथा की है अतः विषय की दृष्टि से भी इनको नियुक्ति की
व्याख्या रूप हैं। नियुक्ति की रचना-शैली के अनुसार न मानने पर कोई बाधा उपस्थित नहीं होती है।
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