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पिंडनियुक्ति
१५७/१. अतिदूरजलंतरिया, कम्मासंकाइ' 'वा न'२ घेच्छंति ।
आणेति संखडीओ', सड्डो सड्डी व पच्छण्णं ॥ ३३७ ॥ १५७/२. निग्गम देउल दाणं, दियादि सन्नाइ- निग्गते दाणं।
सिटुंसि सेसगमणं, दितऽन्ने वारयंतऽन्ने ॥ ३३८ ॥ १५७/३. भुंजण अजीर पुरिमड्डगाइ० अच्छंति५ भुत्तसेसं वा।
आगमणनिसीहियाइ२, न भुंजते १३ सावगासंका" ॥ ३३९ ॥ १५७/४. उक्खित्तं निक्खिप्पति५, आसगतं मल्लगम्मि पासगते।
खामित्तु'६ गता सड्ढा, ते वि य सुद्धा असढभावा ॥ ३४० ।। १५७/५. 'लद्धं पहेणगं मे'८, अमुगत्थगताए संखडीए वा।
वंदणगट्ठपविट्ठा, देति तगं पट्ठिय नियत्ता ॥ ३४१ ।। १५७/६. नीयं पहेणगं मे, नियगाणं निच्छितं व तं तेहिं ।
सागरि९ सएज्झियं२० वा, पडिकुट्ठा संखडे रुट्ठा२१ ॥ ३४२ ।। १५८. एतं तु अणाइण्णं, दुविधं पि य आहडं समक्खातं ।
आइण्णं पि य दुविधं, देसे तह देसदेसे य॥ ३४३ ।। १५९ हत्थसयं खलु देसो, आरेणं होति देसदेसो य२२ ।
'आइण्णे तिन्नि गिहा'२३, ते चिय उवओगपुव्वागा ॥ ३४४ ।। १. संकाण (ब)।
११. यच्छंति (बी)। २. मा ण (मु), न वावि (अ, ब)।
१२. आगमनि (ला, ब, मु), "याई (स)। ३. गच्छंति (ला, ब, स)।
१३. भुंजंत (ला, ब), भुंजई (मु)। ४. आणंति (मु)।
१४. “गासंसा (ला, ब, स)। ५. संखडिओ (अ, बी)।
१५. निक्खवई (अ, बी)। ६. ण (अ, बी)।
१६. सामित्तु (स)। ७. १५७/१-६-ये छहों गाथाएं भाष्य की होनी चाहिए। १७. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३.कथा सं. २१ ।
१५७/१-४-इन चार गाथाओं में परग्राम अभ्याहृत १८. लद्धे पहेणगम्मि (ला, ब)। को स्पष्ट करने वाली कथा का विस्तार है। संक्षिप्त १९. सागारि (मु, ला)। शैली होने के कारण नियुक्तिकार किसी भी गाथा २०. सयज्झियं (मु), सएज्झए (ला, ब), की इतनी विस्तृत व्याख्या नहीं करते हैं। १५७/५, सइज्झिया (क), सइज्झियं-भगिनीं (अव)। ६-इन दो गाथाओं में स्वग्राम अभ्याहत की व्याख्या २१. अ और बी प्रति में गा. १५७/६ और १५८ में है। व्याख्यात्मक होने के कारण इन गाथाओं को क्रमव्यत्यय है। यहां टीका का क्रम स्वीकृत किया
मूल नियुक्ति गाथा के क्रमांक में नहीं जोड़ा है। गया है। ८. सिन्नाइ (स)।
२२. उ (अ, क)। ९. सिट्टम्मि (ला, ब, मु, क स)।
२३. आइण्णे तिण्ह गिहा (ब), आइन्नम्मि तिगिहा (मु)। १०. मड्डिगाइ (क)।
२४. “ग काऊणं (अ, ब, ला, बी, स), पुव्वागं (क)।
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