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पिंडनियुक्ति भाष्य पिंडनियुक्ति और उसका भाष्य-ये दोनों ग्रंथ मिलकर एक रूप हो गए हैं। हस्तप्रतियों में भी बिना किसी निर्देश के दोनों ग्रंथ एक साथ लिखे हुए हैं। प्रकाशित टीका में संपादक ने कुछ गाथाओं के आगे भाष्य गाथा के क्रमांक लगाए हैं लेकिन यह पृथक्करण सम्यक् प्रतीत नहीं होता। ऐसा संभव लगता है कि टीकाकार ने जहां-जहां जिन गाथाओं के लिए भाष्यकार' का उल्लेख किया है, उन-उन गाथाओं एवं उनसे सम्बन्धित गाथाओं के आगे भाष्य के क्रमांक लगा दिए हैं। हमने भाष्य और नियुक्ति गाथाओं को पृथक् करने का प्राथमिक प्रयास किया है। पृथक्करण के समय अनेक स्थलों पर ऐसा अनुभव हुआ कि अनेक गाथाएं जो नियुक्ति के क्रम में प्रकाशित हैं, वे भाष्य की होनी चाहिए। यद्यपि इस कार्य में समय और शक्ति बहुत लगी, अनेक बार गाथाओं की संख्या बदलनी पड़ी। शताधिक बार पूरे ग्रंथ का परावर्तन करना पड़ा फिर भी यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि पृथक्करण का यह प्रयास पूर्णतया सही ही है। इस क्षेत्र में कार्य करने की और भी बहुत संभावनाएं हैं। इतना अवश्य है कि जो व्यक्ति इस क्षेत्र में कार्य करेंगे, उनके लिए यह पृथक्करण का प्रयास नींव का पत्थर साबित हो सकेगा।
भाष्य-गाथाओं को नियुक्ति-गाथा के साथ ही देना ठीक रहता। इससे संपादन में निर्णीत भाष्यगाथाओं के क्रमांक भी इनके साथ जुड़ जाते लेकिन टीका का संपादन न होने से शोध करने वालों की सुविधा के लिए यह उपक्रम नहीं किया गया। हमने जिन बिन्दुओं को पृथक्करण का आधार बनाया है, उसका भूमिका में विस्तार से उल्लेख किया है। टीकाकार द्वारा दिए गए भाष्यकार सम्बन्धी निर्देश तथा टीका में दी गई भाष्य-गाथा का यहां उल्लेख किया जा रहा है• एनामेव गाथां भाष्यकृत् सप्रपञ्चं व्याचिख्यासुः.....व्याख्यानयन्नाह (भागा. १-४ मवृ प. ४) • चाह भाष्यकृत् (भागा. ५ मवृ प. ५) • चाह भाष्यकृत् (भागा. ६ मवृ प. ६) • भाष्यकृदुपदर्शयति (भागा. ७ मवृ प. ६) • भाष्यकृद् गाथात्रयेण व्याख्यानयति (भागा. ८-१०, मवृ प. १३, १४) • एनामेव गाथां भाष्यकृद् व्याख्यानयति (भागा. ११, मवृ प. १४) • भाष्यकृद् गाथाचतुष्टयेन व्याख्यानयति (भागा. १२-१५, मवृ प. १८) • इमामेव गाथां भाष्यकृद् गाथात्रयेण व्याख्यानयति (भागा. २५-२७, मवृ प. ३८) • एनामेव गाथां भाष्यकृद् गाथात्रयेण व्याख्यानयति (भागा. २८-३०, मवृ प. ३८)
चाह भाष्यकृत् (भागा. ३१, मवृ प. ४२) • चाह भाष्यकृत् (भागा. ३२, मवृ प. ७९) • एनामेव गाथां भाष्यकृद्वयाचिख्यासुः प्रथमतो मिश्रजातस्य सम्भवमाह (भागा. ३३, मवृ प. ८८) • तत्रैनामेव गाथां भाष्यकद्वयाचिख्यासः प्रथमत: स्वस्थानमाह (भागा. ३४, मवृ प.८९) • भाष्यकृद् गाथाद्वयेनाह (भागा. ३५, ३६, म प.९२) • एतदेव रूपकत्रयेण भाष्यकृद्वयाख्यानयति (भागा. ३७-३९, मवृ प. ११७) • एतदेव गाथाद्वयेन भाष्यकृद्विवृणोति (भागा. ४०, ४१, मवृ प. १२६) • एतदेव गाथाद्वयेन भाष्यकृद्विवृणोति (भागा. ४२, ४३, मवृ प. १२८) • भाष्यकदगाथात्रयेण व्याख्यानयति (भागा. ४४-४६, म प. १४२) १. मुद्रित टीका में १५ के बाद सीधा २५ का क्रमांक है।
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