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पिंडनियुक्ति भाष्य
१.
गुणनिष्फण्णं गोण्णं, तं चेव जहत्थमत्थवी बेंति ।
तं पुणखमणो जलणो, तवणो पवणो पदीवो य ॥ १ ॥
गुण निष्पन्न नाम गौण कहलाता है। उसी को अर्थवेत्ता यथार्थ नाम मानते हैं । क्रिया के आधार पर यथार्थ नाम इस प्रकार हैं- क्षपण, ज्वलन, तपन, पवन, प्रदीप इत्यादि ।
२.
पिंडण बहुदव्वाणं, पडिवक्खेणावि जत्थ पिंडक्खा ।
सो समयकतो पिंडो, जह सुत्तं पिंडवडियाई ॥ २ ॥
अनेक द्रव्यों का समवाय न होने पर भी जहां 'पिंड' शब्द का प्रयोग होता है, वह समयकृत नामपिंड है; जैसे- सूत्र में पानी के लिए पिंड' शब्द का प्रयोग ।
३.
जस्स पुण पिंडवायट्टया पविट्ठस्स होति संपत्ती । गुलओदणपिंडेहिं', तदुभयपिंडमाहंसु ॥ ३ ॥
तं
आहार-लाभ हेतु प्रविष्ट साधु को जो गुड़, ओदन आदि पिंड की सम्प्राप्ति होती है, वह तदुभय ̈ पिंड कहलाता है।
४.
उभयातिरित्तमहवा, अण्णं पि हु अत्थि लोइयं नामं । अत्ताभिप्पायकतं, जह
सीहगदेवदत्तादी ॥ ४॥
गौण और समयज नाम के अतिरिक्त किसी अन्य आत्माभिप्राय कृत लौकिक नाम को रखना अनुभयज' नाम है, जैसे सिंहक, देवदत्त आदि ।
गोण्णसमयातिरित्तं, इणमन्नं वावि सूइयं नाम ।
जह पिंड त्ति कीरति, कस्सइ नामं मणूसस्स ॥ ५ ॥
गौण तथा समयज से रहित अर्थात् उभयातिरिक्त नाम (निर्युक्तिकार ने) 'अवि शब्द से सूचित किया है। उभयातिरिक्त नाम का उदाहरण है-जैसे किसी मनुष्य का नाम पिंड रख देना ।
१. खवणो (बी, अ) ।
२. इस गाथा के बाद क प्रति में निम्न गाथा मिलती है। टीकाकार ने इस गाथा की गाथा पुनरुक्त सी लगती है विषय की पुनरुक्ति है
अण्णं पिय अत्थि नामं, न केवलं परिभासियं तं तु । जह देवदत्त सीहग, गोवालिय इंदगो वाई ॥
व्याख्या नहीं की है। यह क्योंकि गाथा ४ में इसी
३. बहुयदव्वाणं (स)।
४. पिंडपडि (मु, ब) ।
५. कठिन द्रव्यों के परस्पर संश्लेष के अभाव में पानी के लिए 'पिंड' शब्द का प्रयोग अन्वर्थ रहित है लेकिन
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सिद्धांत में प्रसिद्ध है अतः यह समयज नाम भी कहलाता है (मवृप. ५) ।
प्राकृतलक्षणवशात् षष्ठ्यर्थे तृतीया (मवृ) ।
अन्वर्थयुक्त और समयप्रसिद्ध होने के कारण यह उभयज नाम भी कहलाता है (मवृ प. ५) ।
८. शौर्य-क्रौर्य आदि गुणों से रहित होने पर भी किसी का नाम 'सिंहक' रखना अथवा देव प्रदत्त न होने पर भी 'देवदत्त' नाम रखना अनुभयज नाम है। इसको उभयातिरिक्त नाम भी कहा जाता है (मवृ प. ५) ।
९
पिनिगा. ५ की व्याख्या में छह भाष्यगाथाएं (पिभा १-६) हैं। १०. देखें पिनि ५ ।
६.
७.
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