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पिंडनियुक्ति
३२० / १. आतंको
३२१.
३२२.
३२३.
३२० / २ तवहेतु " चउत्थादी, जाव उ छम्मासिगो तवो होति । सरीरवोच्छेदणट्ठया,
छट्ठ
३२४.
बंभवत पालणट्ठा',
एतेहिं
धम्मं
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जरमादी,
सोलस
'दस
'एसो
जा
ಕ
अणाहारो छहि ठाणेहिं, नाइक्कमे' भिक्खू, ' धम्मज्झाणरओ
उग्गमदोसा, सोलस
दोसा१०,
एसणाय
जह
भणितो सव्वभावदंसीहिं १२ ।
आहारविधी, धम्मावासगजोगा, जेण न हायंति तं कुज्जा४ ॥ ६७० ॥
भवे
विराहणा सुत्तविहिसमग्गस्स । अज्झत्थविसोहिजुत्तस्स १५ ॥ ६७१ ॥
निज्जरफला,
सा
4
'राया - सन्नायगादि" पाणिदया
जयमाणस्स
होति
१. राय° (स), 'यगाई (अ), यगा व ( ओभा २९३) । २. 'वयरक्खणट्ठा (ला, ब, स ) ।
३. पाण' (ला, ब, स, ओभा) ।
४. हियाई (क, ओभा) ।
५. हेऊं (स) ।
६. ओभा २९४, तु. जीभा १६६९, ३२० / १, २ - इन गाथाओं को निगा के क्रम में नहीं रखा हैं। द्र. टिप्पण ३१८/१, २।
उवसग्गो ।
वासमहिगादी ॥ ६६७ ॥
७. य (ला, ब, स ) ।
८. ण अइक्कमे (ला, ब, ) ।
९. झाणजोगरओ (ला, ब, ओनि ५८२), झाणजोगगओ तवे (स), यह गाथा सभी हस्तप्रतियों में उपलब्ध है । मलयगिरि टीका की मुद्रित पुस्तक में यह गाथा पादटिप्ण में है। संपादक ने 'एषा गाथा
होतऽणाहारो ॥ ६६८ ॥
जो
उप्पायणाय
' संजोयणमादि
१३.
१४.
१५.
भवे ।
१९
भवे ॥
दोसा तु ।
पंचेव१९ ॥ ६६९ ॥
श्रीवीराचार्यकृत श्रीपिंडनियुक्तिवृत्तौ सूत्रे च दृश्यते श्रीमलयगिरिसूरिप्रणीत वृत्त्यादर्शेषु बहुषु न दृश्यते' ऐसा उल्लेख है । अवचूरि में यह गाथा है किन्तु निगा के क्रमांक में नहीं जोड़ी गई है। यह गाथा निर्युक्ति की होनी चाहिए। गा. ३२० वीं के साथ विषय की दृष्टि से इसका सीधा संबंध जुड़ता है। १०. x ( अ, बी) ।
११. 'माययं चेव (स), जीभा १६७१, पंचा १३/३१ १२. जीभा (१६७३ ) में इस गाथा का पूर्वार्द्ध इस प्रकार है
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एतद्दोसविमुक्को, भणिताहारो जिणेहिं साहूणं । धम्मोवासय' (ला, ब), धम्मावस्सग' (जीभा ) ।
व्यभा ३७०२ ।
ओनि ७५९, पिंप्र १०२ ।
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