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पिंडनियुक्ति भाष्य
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करता है तथा एक दिन उसे संस्तारक के किनारे शरीर पर्यन्त फैलाकर अधोमुख लटका देता है। १२. निद्धेयरो य कालो', एगंतसिणिद्धमज्झिमजहन्नो।
लुक्खो वि होति तिविधो, जहण्ण मज्झो य उक्कोसो॥१२॥ काल दो प्रकार का होता है-स्निग्ध और रूक्ष । स्निग्ध काल भी तीन प्रकार का होता हैएकान्त स्निग्ध (अति स्निग्ध), मध्यमस्निग्ध और जघन्यस्निग्ध। रूक्ष काल भी तीन प्रकार का होता हैजघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट। १३. एगंतसिणिद्धम्मी, पोरिसिमेगं अचेतणो होति।
बितियाए संमीसो, ततियाइ सचेतणो वत्थी' ॥ १३॥ एकान्त स्निग्धकाल में दृतिस्थ पवन एक पौरुषी तक अचित्त रहता है, दूसरी पौरुषी में मिश्र तथा तीसरी प्रहर में सचित्त हो जाता है। १४. मज्झिमनिद्धे दो पोरिसीउ अच्चित्तु मीसओ ततिए।
चउत्थीए सचित्तो, पवणो दइयाइ मज्झगतो॥१४॥ मध्यम स्निग्ध काल में दृतिस्थ पवन दो पौरुषी तक अचित्त रहता है, तीसरी पौरुषी में मिश्र तथा चौथी पौरुषी के प्रारंभ में ही सचित्त हो जाता है। १५. पोरिसितिगमच्चित्तो, निद्धजहन्नम्मि, 'मीसग-चउत्थी।
सच्चित्त पंचमीए, एवं लुक्खे वि दिणवुड्डी ॥१५॥ जघन्य स्निग्ध काल में दृतिस्थ अचित्त पवन तीन पौरुषी तक अचित्त रहता है, चौथी पौरुषी में मिश्र तथा पांचवीं पौरुषी के प्रारंभ में सचित्त हो जाता है। इसी प्रकार रूक्ष काल में पौरुषी के स्थान पर दिनवृद्धि समझनी चाहिए। १६. ओरालग्गहणेणं, तिरिक्खमणुयाऽहवा सुहुमवज्जा।
उद्दवणं पुण जाणसु, अतिवातविवज्जितं पीडं॥२५॥
औदारिक शब्द के ग्रहण से तिर्यञ्च'२, मनुष्य तथा सूक्ष्म वर्जित एकेन्द्रिय का ग्रहण होता है। १. ४ (स)।
रहती है, दूसरे दिन मिश्र तथा तीसरे दिन सचित्त हो २. सजल और शीत काल स्निग्ध तथा उष्ण काल रूक्ष जाती है। मध्यम रूक्षकाल में दो दिन तक अचित्त, कहलाता है (मवृ प. १८)।
तीसरे दिन मिश्र तथा चौथे दिन सचित्त हो जाती है। ३. द्धम्मि (क)।
उत्कृष्ट रूक्ष काल में वस्तिगत वायु तीन दिन तक ४. भइयाए (ब, स)।
अचित्त, चौथे दिन मिश्र तथा पांचवें दिन सचित्त हो ५. होइ (क)।
जाती है (मवृ प १८)। ६. गसच्चित्तो (क)।
११. जीभा ११०१, मुद्रित टीका में भाष्यगाथाओं के क्रमांक ७. मीसगे चउहा (अ, स)।
में १५ के बाद सीधा २५ का क्रमांक है। ८. पंचमाहिं (क, स)।
१२. तिर्यञ्च में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के प्राणी समाविष्ट ९. पिनि २७/२ की व्याख्या में चार भाष्यगाथाएं (पिभा होते हैं। एकेन्द्रिय के दो भेद होते हैं-सूक्ष्म और बादर । १२-१५) हैं।
सूक्ष्म एकेन्द्रिय का अपद्रावण मनुष्य के द्वारा संभव १०. जघन्य रूक्ष काल में वस्तिगत वायु एक दिन तक अचित्त नहीं है इसलिए उसका यहां वर्जन किया गया है।
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