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पिंडनियुक्ति
२०३. जामातिपुत्तपतिमारणं' चरे केण कहितं ति जणवादो।
जामातिपुत्तपतिमारएण खंतेण 'मे सिटुं" ॥ ४३४ ॥ दारं ॥ २०४. नियमा तिकालविसए, वि निमित्ते' छव्विधे भवे दोसा।।
सज्जं तु वट्टमाणे, आउभए तत्थिमं णातं ॥ ४३५ ॥ आकंपिया निमित्तेण, भोइणी भोइए चिरगतम्मि।
पुव्वभणिते कहते', आगतों० रुट्ठो व वलवाए ॥ ४३६ ।। २०६. जाती-कुल-गण कम्मे, सिप्पे आजीवणा उ पंचविधा।
सूयाएँ असूयाएँ व, 'अप्पाण कहे हि१२ एक्के क्को '१३ ॥ ४३७ ॥ २०७. जाती-कुले विभासा, गणो उ मल्लादि कम्म किसिमादी।
तुण्णादि४ सिप्पऽणावज्जगे१५ च कम्मेतराऽऽवज्जे १६ ॥ ४३८ ॥ २०७/१. होमादऽवितहकरणे१५, नज्जति जह सोत्तियस्स८ 'पुत्तो त्ति'१९ ।
वसिओ० वेस गुरुकुले, आयरियगुणे व सूएति२१ ॥ ४३९ ॥ १. जामाईपु (स)।
९. कहित्ता (ला, ब), कहेंते (निभा ४४०६)। २. तु (निभा ४४०२)।
१०. “गतो (स)। ३. कहयं (अ, बी)।
११. वडवाए (मु), निशीथ चूर्णि में इस गाथा के लिए ४. सिटुं ति (ला, ब, स), नियुक्तिकार प्रायः कथा
'इमा भद्दबाहुकया गाहा' का उल्लेख है,वहां इसकी का संकेत एक ही गाथा में कर देते हैं। यहां
व्याख्या में दो गाथाएं और हैं, उनके लिए 'एतीए गा. २०२ और २०३-इन दो गाथाओं में कथा का
इमा दो वक्खाणगाहातो' का उल्लेख है। जीभा में वर्णन है। धात्री और निमित्त द्वार में भी नियुक्तिकार
इस गाथा में आई कथा ६ गाथाओं में उल्लिखित ने संक्षेप में कथा का संकेत किया है और उसकी
है। (द्र. जीभा १३४२-४७), कथा के विस्तार हेतु विस्तृत व्याख्या भाष्यकार ने की है लेकिन यहां
देखें भाष्यगाथा ३३,३४ तथा परि. ३,कथा सं. २८ । 'दूतीद्वार' में नियुक्तिकार ने ही दो गाथाओं में विस्तार
१२. कहेइ (बी, क), कहेज्ज (निभा ४४११)। से कथा का संकेत कर दिया है।
१३. कहेइ अप्पाणमेक्केक्के (जीभा १३५०)। ५. नेमिते (निभा ४४०५)।
१४. तुण्णा य (ला, ब), तुल्लाइ (अ, बी), अ, बी ६. वज्जमाणे (अ, बी), 'माणं (क)।
प्रति में अनेक स्थलों पर ण के स्थान पर ल पाठ है। ७. जीभा १३४१. इस गाथा के बाद अ और बी प्रति १५. सिप्पिणा" (स), "ज्जगं (मु, निभा). में निम्न गाथा मिलती है। यह गाथा प्रक्षिप्त सी
'ज्जणं (ला, ब, अ, क)। लगती है क्योंकि इससे पर्व गाथा में 'निमित्ते १६. “ज्ज (मु, अ, क, ब), निभा ४४१२ । छविहे भवे दोसा' का उल्लेख किया जा चका है। १७. होमाय' (मु), भोमाई' (अ, बी)। मलयगिरि टीका एवं अवचूरि में भी यह गाथा १८. सोत्तिस्स (ला, ब), सुत्ति' (क)। व्याख्यात नहीं है
१९. पुत्तु त्ति (अ, क), पुत्त ति (बी)। लाभालाभं सुहं दुक्खं, जीवितं मरणं तहा।
२०. उसिओ (अ, स)। छविहे वि निमित्ते उ, दोसा होंति इमे सुण ॥
२१. निभा ४४१३, जीभा १३५३, २०७/१-४-ये चारों ८. आगंपिया (ला, ब, अ, क)।
गाथाएं २०७ की व्याख्या रूप हैं अतः ये भाष्य की होनी चाहिए।
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