________________
पिंडनियुक्ति
१७६. अचियत्तमंतरायं, तेणाहड एगणेगवोच्छेदो।
निच्छुभणादी दोसा, 'तस्स अलंभे य जं५ पावे ॥ ३७३ ॥ दारं ॥ १७७. तेणा व संजतट्ठा, कलुणाणं अप्पणो व अट्ठाए।
'वोच्छेदं व पदोसं'२, 'न कप्पते कप्पऽणुण्णातं'३ ॥ ३७४ ॥ १७७/१. संजतभद्दा तेणा, आयंती' वा असंथरे जतिणं ।
जइ देंति न घेत्तव्वं, निच्छुभ-वोच्छेद मा होज्जा ॥ ३७५ ॥ १७७/२. घतसत्तुगदिटुंतो', समणुण्णाता व घेत्तु णं पच्छा।।
'देंति तयं तेसिं चिय'", समणुण्णाता व भुंजंति ॥ ३७६ ॥ दारं ॥ १७८. अणिसिटुं पडिकुटुं, अणुणातं कप्पते१० सुविहिताणं ।
___ 'लड्डग चोल्लग जंते, संखडि-खीरावणादीसु१॥ ३७७ ॥ दारं ।। १७९. बत्तीसा सामन्ने, ते ‘वि य१२ ण्हातुं गत'३ त्ति इति४ वुत्ते।
परसंतिएण पुण्णं, न तरसि काउं ति५ पच्चाह'६ ॥ ३७८ ।। १७९/१. 'अवि य हु'१७ बत्तीसाए, 'दिण्णे य'१८ तवेगमोयगो९ न भवे।
अप्पवयं बहुआयं, जदि जाणसि देहि तो'२० मझं ॥ ३७९ ।।
१. वियाल अलंभे य जं (अ, बी), वियाल लंभे व जो १०. कप्पइ (स)।
(स, ला), वियालऽलंभे य जं (निभा ४५०७)। ११. गाथा का उत्तरार्द्ध (निभा ४५१६) में इस प्रकार है२. वोच्छेय पओसं वा (ला, ब, क, मु)।
लड्डग जंते संखडि, खीरे वा आवणादीसुं। ३. णप्पए कप्पए अणुण्णातं (अ, बी), ‘ण्णाए (स), १२. कहिं (मु, क, टी)। निभा ४५१३।
१३. गइ (अ, बी)। ४ आयत्ती (ला), अइयई (अ, बी), अचियत्ती (निभा ४५१४)। १४. इय (मु)। ५. जतीणं (स, निभा)।
१५. ण (क)। ६. १७७/१,२-ये दोनों गाथाएं १७७ वीं गाथा की व्याख्या १६. निभा ४५१७, कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३,
प्रस्तुत करने वाली हैं अत: भाष्य की होनी चाहिए। कथा सं. २५ । प्रकाशित टीका में ये नियुक्ति गाथा के क्रम में हैं १७. अबहु (ला)। लेकिन इनको मल निर्यक्ति गाथा के क्रम में नहीं १८. दिण्णेहि (ला, ब, क, मु, स), रखा है।
दिण्णाए (निभा ४५१८)। ७. हस्तप्रतियों में 'घतसत्तुगदिटुंतो' के स्थान पर १९. तमेग' (स)। 'तेणगभएण घेत्तुं' पाठ मिलता है। अवचूरिकार ने भी २०. तो देह (अ, बी)। अपनी व्याख्या में 'क्वचिद् द्वितीयगाथायां घयसत्तुग- २१. गाथा १७९ में अनिसृष्ट से संबंधित कथा का दिटुंतो' का उल्लेख किया है।
संक्षेप में उल्लेख है। १७९/१, २ में इसी कथा ८. तं सत्थिगाण देंती (निभा ४५१५)।
का विस्तार है अतः १७९/१, २ ये दोनों गाथाएं ९. तु (स)।
स्पष्ट रूप से भाष्य की होनी चाहिए। कोई भी ग्रंथकार इतनी पुनरुक्ति नहीं करता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org