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पिंडनियुक्ति
४४/४. अपसत्थो उ असंजम, अण्णाणं अविरती य मिच्छत्तं।।
कोहा आसव काया, कम्मे गुत्ती अधम्मो य॥६३ ॥ ४५ बज्झति य जेण कम्मं, सो सव्वो होति अप्पसत्थो उ।
मुच्चति य जेण सो पुण, पसत्थओ नवरि विण्णेओ॥ ६४ ॥ दसण-नाण-चरित्ताण, पज्जवा जे उ जत्तिया वावि।। सो सो होति तदक्खो, पज्जवपेयालणा पिंडो॥६५॥ कम्माण जेण भावेण, अप्पगे चिणति चिक्कणं पिंडं।
सो होति भावपिंडो, 'पिंडयए पिंडणं जम्हा'२ ॥६६॥ ४७. दव्वे अच्चित्तेणं', 'भावे य पसत्थएणिहं५ पगतं । उच्चारितत्थसरिसा,
सीसमतिविकोवणट्ठाए ॥ ६७ ॥ 'आहार-उवधि-सेज्जा', पसथपिंडस्सुवग्गहं कुणति । आहारे अहिगारो, अट्ठहि ठाणेहिँ सो सुद्धो॥ ६८ ॥ निव्वाणं खलु कज्जं, नाणादितिगं तु कारणं तस्स।
निव्वाणकारणाणं, तु कारणं होति आहारो॥६९ ॥ ४९/१. जह कारणं तु तंतू, पडस्स तेसिं च होंति पम्हाई।।
नाणादितिगस्सेवं, आहारो मोक्खनेमस्स ॥ ७० ॥ ४९/२. जह कारणमणुवहतं, कज्जं साहेति अविकलं१९ नियमा।
मोक्खक्खमाणि१२ एवं, नाणादीणि उ अविगलाणि१३ ॥ ७१ ॥
१. या (अ, ब, ला), ४४/१-४-ये चार गाथाएं ७,८. कारयं (स)।
प्रकाशित टीका में निगा के क्रम में व्याख्यात हैं। ९. पम्हाई (क)। टीकाकार ने इन गाथाओं के लिए किसी प्रकार का १०. नेमिस्स (अ, क, बी) नेमशब्दो देश्यः कार्याभिधाने उल्लेख नहीं किया है लेकिन ये गाथाएं भाष्य की रूढः (मवृ)। होनी चाहिए। ४४ वीं गाथा का विस्तार ही इन ११. अवगलं (ब), अविलगं (स)। गाथाओं में किया गया है। इनको निगा के क्रम में १२. “खमाइं (ला, अ, ब, स)। न रखने पर भी ४४ वीं गाथा विषयवस्तु की दृष्टि १३. लायं (मु, अ, क, ला), ४९/१,२-ये दोनों गाथाएं
से ४५ वी गाथा से संबद्ध प्रतीत होती है। प्रकाशित टीका में निगा के क्रम में हैं लेकिन २. पिंडयई (अ, क, बी), पिंडइए पिंडओ जम्हा (स)। ये ४९ वी गाथा की व्याख्या रूप हैं। संक्षिप्त ३. तेण उ (अ, बी)।
शैली होने के कारण नियुक्तिकार न पुनरुक्ति ४. भावम्मि (मु)।
करते हैं और न ही विस्तृत व्याख्या। संभावना की ५. पसत्थएण इह (अ, बी)।
जा सकती है कि ये दोनों गाथाएं भाष्य की होनी ६. आहारोवहिसेज्जाए (अ, बी)।
चाहिए।
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