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पिंडनियुक्ति
५०.
संखेवपिंडितत्थो', एवं पिंडो मए समक्खातो। फुड-विगड-पागडत्थं, वोच्छामी एसणं एत्तो ॥ ७२ ॥ दारं ॥ एसण गवेसणा मग्गणा य उग्गोवणा य बोधव्वा।
एते उ एसणाए, नामा एगट्ठिया होंति ।। ७३ ॥ ५२. नामं ठवणा दविए, भावम्मि य एसणा मुणेयव्वा।।
दव्वे भावे एक्केक्कया उ तिविहा मुणेयव्वा ॥ ७४ ॥ ५२/१. जम्मं एसति एगो, सुतस्स अन्नो तमेसए नटुं।
सत्तुं एसति अन्नो, एसति अन्नो य से मच्चु । ७५ ॥ ५२/२. एमेव सेसगेसु वि, 'चउप्पदापद-अचित्तमीसेसु"।
जा जत्थ जुज्जते एसणा तु तं तत्थ जोएज्जा ॥ ७६ ॥ ५२/३. भावेसणा उ तिविधा, गवेस-गहणेसणा य० बोधव्वा।
घासेसणा'१ उ१२ कमसो, पण्णत्ता वीतरागेहिं ॥ ७७ ॥ ५२/४. अगविट्ठस्स उ गहणं, न होति न य अगहियस्स परिभोगो३।।
एसण तिगस्स एसा, नातव्वा आणुपुव्वीए ॥ ७८ ॥ ५३. नामं ठवणा दविए, 'भावे य'१५ गवेसणा मुणेयव्वा।
दव्वम्मि कुरंग-गया, उग्गम-उप्पादणा भावे ६ ॥ ७९ ॥
१. "पिंडयत्थो (क, ला, ब)।
गाथा विषय-वस्तु की दृष्टि से ५३ वी गाथा के २. वियड (स)।
साथ सम्बद्ध प्रतीत होती है। ३. पत्तो (ला, ब), इत्तो (अ, बी)।
६. सेसए (ब, ला)। ४. पदेण (स)।
७ चउप्पयाए अचित्त (ब, ला), "प्पया अपयचित्त (क)। ५. ५२/१-४-ये चार गाथाएं प्रकाशित टीका में निगा ८. जो (अ, ब, ला)।
के क्रम में होते हुए भी भाष्य की होनी चाहिए ९. जुज्जई (अ, बी)। क्योंकि ये गा. ५२ की व्याख्या रूप हैं। ५२/१ में १०. उ (क)। एषणा, गवेषणा आदि शब्दों का उदाहरण द्वारा ११. गासे (मु)।। अर्थ स्पष्ट किया गया है। गाथा ५२ में ग्रंथकार १२. इ (ला, ब), यं (अ, बी, स)। इस बात का निर्देश कर चुके हैं कि द्रव्यैषणा और १३. स प्रति में गाथा का पूर्वार्द्ध नहीं है। भावैषणा के तीन-तीन भेद जानने चाहिए। ५२/३ १४. 'पुव्वी उ (ला, ब, स, मु)। में पुनः इसी बात की पुनरुक्ति हुई है। ५२/४ भी १५. भावम्मि (अ, बी)। ५२/३ से जुड़ी हुई प्रासंगिक गाथा है। इन चार १६. यह गाथा ला और ब प्रति में नहीं है। गाथाओं को निगा के क्रम में न रखने पर ५२ वीं
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