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पिण्डनिर्युक्ति : एक पर्यवेक्षण
बलपूर्वक किसी भी रीति से पूरा ले लेता था।
बहिन सम्मति ने अपने साधु भाई के लिए दो पल तैल दुगुने ब्याज से लिया। तीसरे दिन वह तैल एक कर्ष हो गया। ऋण असीमित होने से उसे दासत्व स्वीकार करना पड़ा।
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चिकित्सा
भारतीय आयुर्वेद विज्ञान अत्यन्त समृद्ध है । उसमें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक - तीनों प्रकार की चिकित्साओं का उल्लेख मिलता है। निर्युक्तिकार ने प्रसंगवश आयुर्वेद एवं चिकित्सा के अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों का निरूपण किया है। चिकित्सा पद्धति के द्वारा एक व्यक्ति ने व्याघ्र के अंधेपन को मिटा दिया।
भोजन के अंत में दूध स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। रात्रि में अधिक जगने से अजीर्ण रोग होता है ।' बीमारी में अजीर्ण न हो इसलिए वस्त्र बार-बार धोने चाहिए। सांप काटने पर मंत्र और औषधि दोनों का प्रयोग होता था। आयुर्वेद और आरोग्य से सम्बन्धित अनेक तथ्य परिशिष्ट संख्या ४ में संकलित हैं। धान्य एवं खाद्य
देशविशेष के धान्य प्रसिद्ध होते थे। जैसे मगध के गोबर ग्राम में शालि प्रचुर रूप में उत्पन्न होने के कारण वह प्रसिद्ध था। डॉ. कमलचन्द्र जैन ने एक कल्पना की है कि संभवत: गोबर की सुलभता के कारण उस गांव का नाम गोबर पड़ गया होगा। वहां गोबर की खाद सुलभ होती होगी, जिसका उपयोग उर्वरक के लिए होता रहा होगा।
कोद्रव और रालक की हल्के स्तर के धान्यों में गिनती होती थी अतः निर्धन लोग प्रायः इन्हीं धान्यों का उपभोग करते थे, धनाढ्य लोग शालि धान्य का प्रयोग करते थे। निर्युक्तिकार ने प्रसंगवश अनेक धान्य, दाल, मसाले, खाद्य-पदार्थ, पाकभाजन एवं पाक-क्रिया के साधनों का उल्लेख किया है। इसके लिए देखें परिशिष्ट १६ विशेषनामानुक्रम पृ. ३०६ ।
धान्य आदि की सुरक्षा के लिए उन्हें कोठे में भरकर गोबर से लीपकर लाख आदि से मुद्रित कर दिया जाता था, जिससे वे लम्बे समय तक विकृत नहीं होते थे ।" बृहत्कल्प भाष्य में भी धान्य के भण्डारन की वैज्ञानिक विधि उपलब्ध होती है । १२
१. मनु ८/५० ।
२. पिनि १४४ / २ ।
३. मवृ प. १३३ ।
४. मवृ प. १११ 1
५. मवृ प. ३३ ।
६. पिनि २१, मवृ प. १२ ।
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७. मवृ प. १०८ ।
८. मवृ प. ७२, ७३ ।
९. प्राचीन जैन साहित्य में आर्थिक जीवन, पृ. ४४, ४५ ।
१०. मवृ प. १०० ।
११. पिनि १६२, मवृ प. १०५ ।
१२. बृभा ३३१०-१२।
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