________________
विषय सूची
२०१/१-३ २०२, २०३
२०४
२०५
२०६ - २०७/४
२०८
२१४, २१५
२१६
वनीपक के पांच प्रकार एवं निरुक्त । २०८/१-२१३ वनीपकत्व करने के प्रकार एवं दोष । चिकित्सा के प्रकार एवं उसके दोष ।
२२०
२२०/१, २
२२१
२२२ - २२४
२२५ - २२६ / १
२२७.
२२७ / १ - २२८ २२८/१, २२९
२३०-३२
२१७-२१८ / १ क्रोधपिंड का स्वरूप एवं दृष्टान्त । मानपिंड का स्वरूप ।
२१९
२१९/१-१५ मानपिंड एवं मायापिंड का दृष्टान्त । लोभपिंड का स्वरूप ।
२३३
२३४
२३५
२३६
२३६/१-३
२३७
२३८
२३८/१, २
२३९
२३९/१
दूतीत्व करण की प्रक्रिया | दूतीविषयक पिता-पुत्री की कथा । निमित्त के प्रकार ।
२४० २४०/१-४
निमित्त द्वार का दृष्टान्त ।
आजीवना के पांच प्रकार एवं उनका स्वरूप ।
Jain Education International
क्रोधपिंड आदि से संबंधित दृष्टान्त एवं उनसे संबंधित नगरों के नाम ।
लोभपिण्ड का दृष्टान्त । संस्तव के भेद - प्रभेद ।
संबंधी संस्तव की व्याख्या एवं उसके दोष । वचन संस्तव की व्याख्या ।
विद्या एवं मंत्र द्वार के दृष्टान्तों का संकेत ।
विद्या द्वार से संबंधित दृष्टान्त एवं दोष ।
मंत्र द्वार में मुरुण्ड राजा एवं पादलिप्त का कथानक तथा उसके दोष ।
चूर्ण, योग एवं मूलकर्म से संबंधित दृष्टान्त एवं उनके दोष ।
गवेषणा के साथ ग्रहणैषणा का संबंध ।
उत्पादना के दोष साधु से समुत्थित तथा ग्रहणैषणा के दोष साधु और गृहस्थ दोनों से समुत्थित । शंकित और भाव से अपरिणत दोष साधु से तथा अन्य दोष गृहस्थ से समुत्थित ग्रहणैषणा के निक्षेप ।
द्रव्य ग्रहणैषणा में वानरयूथ का दृष्टान्त ।
भाव ग्रहणैषणा के दस दोष ।
शंकित दोष की चतुर्भंगी ।
उद्गम - उत्पादना के पच्चीस दोषों का उल्लेख ।
छद्मस्थ के लिए श्रुतज्ञान प्रमाण ।
श्रुतज्ञानी द्वारा अशुद्ध आहार का ग्रहण, केवली द्वारा उसका उपभोग अन्यथा श्रुत की अप्रामाणिकता ।
श्रुत के अप्रामाण्य से चारित्र और मोक्ष का अभाव ।
शंकित चतुर्भंगी की व्याख्या ।
९
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org