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पिंडनियुक्ति
बार मोदक प्राप्त किए। छद्मस्थता वश साधु के द्वारा भी मूलकर्म के प्रयोग द्वारा गर्भ-परिशाटन, गर्भाधान तथा वशीकरण आदि के प्रयोग किए जाते थे। अञ्जन आदि प्रयोग से अदृश्य होने की विद्या प्रचलित थी। दो क्षुल्लक राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ अदृश्य होकर भोजन करते थे। पिण्डनियुक्ति भाष्य में विविध गुप्त विद्याओं से युक्त योनि प्राभृत का उल्लेख मिलता है। इस ग्रंथ के द्वारा संयोग बिना भी सम्मूर्च्छिम घोड़े आदि की उत्पत्ति संभव थी।
ज्योतिष विद्या प्रकर्ष पर थी, इसके द्वारा नैमित्तिक बता देते थे कि घोड़ी के पेट में पांच वर्ण वाला (पंचपुंड्र) घोड़ी का बच्चा है। निमित्त के माध्यम से गुह्य प्रदेश के तिल तथा स्वप्न आदि के बारे में भी बताया जाता था। शुभ-अशुभ शकुन विषयक ज्ञान भी टीकाकार को था। प्रस्थान के समय शंख की ध्वनि को मंगल फल देने वाली तथा महाशकुन वाली बताई गई है। अर्थ-व्यवस्था
पिंडनियुक्ति को पढ़ने से उस समय की अर्थ-व्यवस्था का भी यत्किंचित् ज्ञान होता है। कर्म, शिल्प आदि के द्वारा आजीविका चलती थी। कृषि एवं पशुपालन के व्यवसाय का भी स्फुट रूप से वर्णन मिलता है। धनाढ्य सेठ अपने घर के लिए गाय-भैंस की रखवाली में कर्मकर नियुक्त करते थे, जो वैतनिक होने पर भी आठवें दिन सारा दूध अपने घर लेकर जाते थे।
___मत्स्य पकड़कर उसका व्यवसाय किया जाता था। मच्छीमार कांटे में मांस लगाकर मछली को पकड़ते थे। इधर-उधर न हो जाए इसलिए वह उन्हें धागे में पिरोता था।
कौटुम्बिक खेती के कार्य हेतु हालिकों को नियुक्त करता था। केवल भोजन के आधार पर भी हालिक खेती में मजदूरी करते थे। हालिकों के लिए भोजन सामूहिक रूप से तथा व्यक्तिगत रूप से अलगअलग भी भेजा जाता था।
ब्याज का धंधा प्रकर्ष पर था, इसे वृद्धि कहा जाता था। पिण्डनियुक्ति में १०० रु. पर ५ रु. ब्याज का उल्लेख मिलता है। टीकाकार मलयगिरि ने प्रतिवर्ष का उल्लेख किया है, जबकि यह ब्याज मासिक होना चाहिए क्योंकि कौटिलीय अर्थशास्त्र में १०० पण पर ५ पण मासिक ब्याज का उल्लेख है। ऋण न चुकाने पर व्यक्ति को दास बना दिया जाता था। मनुस्मृति में भी उल्लेख है कि व्यक्ति अपने ऋण को
१. पिनि २१९/१०, मवृ प. १३७। २. पिभा ३५-३७, मवृ प. १४३। ३. मवृ प. १२८। ४. मवृप. २०;शङ्खशब्दमाकर्ण्यमानं प्रशस्तंमहाशकुनमामनन्ति
शाकुनिकाः। ५. मवृ प. १११।
६. मवृ प. १७०, १७१। ७. पिनि १८२, मवृ प. ११४ । ८. मवृ प. ३३ ; ऋणस्य पंचकशतादिवर्द्धनरूपेण कराणां
प्रतिवर्षे.....। ९. कौटि. ३/६८/११/१।
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